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अध्यात्म समाज-निरपेक्ष भूमिका है। देह-मुक्ति उसका लक्ष्य है इसलिये इसमें अहिंसा प्राणी को न मारने तक ही सीमित नहीं रही अपितु अविरति और क्रिया के सिद्धांत तक पहुंच गई। हिंसा से विरति नहीं करने वाला हिंसा नहीं करने पर भी हिंसक है।234 अविरति के कारण प्राणी को अतीत कालीन शरीर की अपेक्षा से भी हिंसा की क्रिया लगती है।235 सर्वविरति के अभाव में प्रत्येक प्राणी का शरीर निरन्तर छह काय का अधिकरण बना रहता है। इस प्रकार अध्यात्म ऐकान्तिक निवृत्तिवादी पथ है। पुराण में निर्दिष्ट क्रिया
जैन आगमों के अतिरिक्त जैन पुराण आदि में भी तीन प्रकार की क्रियाओं का प्रतिपादन मिलता है।236 (1) गर्भान्वय क्रिया (2) दीक्षान्वय क्रिया (3) कन्वय आदि पुराण के अड़तीसवें पर्व में इन क्रियाओं के प्रभेद इस प्रकार है -
(1) गर्भान्वय क्रियाएं 1. आधान 2. प्रीति 3. सुप्रीति 4. धृति
5. मोद 6. प्रियोद्भव 7. नामकर्म 8. बहिर्यान 9. निषद्या 10. प्राशन
11. व्युष्टि
12. केशवाप 13. लिपि संख्यान संग्रह 14. उपनीति 15. व्रतचर्या 16. व्रतावतरण 17. विवाह 18. वर्णलाभ 19. कुलचर्या 20. गृहीशिता 21. प्रशान्ति 22. गृहत्याग 23. दीक्षाद्य 24. जिनरूपता 25. मौनाध्ययन वृत्तत्व 26. तीर्थकृत 27. गुरुस्थानाभ्युगम 28. गणोपग्रहण 29. स्वगुरुस्थानसंक्रान्ति 30. नि:संगत्वात्म भावना 31. योग निर्वाण संप्राप्ति 32. योग निर्वाण साधन 33. इन्द्रोपपाद 34. अभिषेक 35. विधिदान 36. सुखोदय 37. इन्द्रत्या
38. अवतार 39. हिरण्योत्कृष्ट जन्मता 40. मंदरेन्द्राभिषेक 41. गुरुपूजोपलम्भन 42. यौवराज्य 43. स्वराज
44. चक्रलाभ 45. दिग्विजय 46. चक्राभिषेक 47. साम्राज्य 49. योग सन्मह 50. आर्हन्त्य 51. तद्विहार
52. योगत्याग 53. अग्रनिर्वृत्ति 100
अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया