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जघन्य
मध्यम
तीव्रतर
(2) भाव लेश्या- यह आत्मा का सूक्ष्म स्पन्दन है जिसे अध्यवसाय या अन्तकरण की वृत्ति के रूप में पहचाना जाता है। पं. सुखलालजी के शब्दों में भाव लेश्या आत्मा का परिणाम है। भाव लेश्या एक प्रकार के मनोभाव है। मनोभाव की संरचना में तीन तत्त्वों का योग होता हैं- शरीर, वीर्यलब्धि और कषाय का उदयविलय, जो संक्लेश और योग पर आधारित है। संक्लेश के तीन रूप हैं
उत्कृष्ट तीव्र
तीव्रतम | मन्द | मन्दतर इन आधारों पर भाव लेश्या के अनेक प्रकार बन जाते है।
भाव से विचार प्रभावित होते हैं। विचार और पुद्गल द्रव्य में गहरा सम्बन्ध है। प्रत्येक प्राणी के इर्द-गिर्द पुद्गलों का वलय है। उनमें वर्ण की प्रमुखता है। वर्ण का हमारे जीवन और चिन्तन पर प्रभाव पड़ता है। इस तथ्य को प्राचीन एवं अर्वाचीन सभी तत्त्वविदों ने माना है। मनोभावों को समझने के लिये जैन परम्परा में प्रसिद्ध सुन्दर रूपक को स्वीकार किया है। चित्र और स्पष्टीकरण निम्नानुसार है
मन्दतम
तेजो लेशी
लिलेशी
नीलले
कृष्ण लेश्या
शुक्ल लेशी
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अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया