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इसी आधार पर वैशेषिक दर्शन को औलुक्य दर्शन भी कहते हैं। डॉ. कीथ ने लिखा है 55 सांख्यकारिका के चीनी अनुवाद में सांख्य दर्शन के आचार्यों की तालिका दी है जिसमें पंचशिख के पश्चात् तथा ईश्वरकृष्ण के पूर्व गार्ग और उलुक नाम का उल्लेख हुआ है। अत: सांख्यदर्शन के उलुक ही उल्लिखित उलुक होने चाहिये क्योंकि मरीचि और कपिल भी सांख्यदर्शन के ही पुरस्कर्ताओं में से थे। गार्ग्य
बृहदारण्यक उपनिषद् में ऋषियों की पुरानी तालिका में दो गार्ग्य का नाम मिलता है जिनमें से एक याज्ञवल्क्य के समकालीन थे। सांख्यदर्शन की आचार्य तालिका में भी गार्ग्य का नाम है। आचार्य अकलंक ने अक्रियावादियों में सांख्य दर्शन के पुरस्कर्ता आचार्यों को ही परिगणित किया है। अतः प्रकृत गाये उन्हीं में से होने चाहिये। व्याघ्रभूति
सिद्धांत कौमुदी में दो कारिकाएं आई हैं जिनमें व्याघ्रभूति के मत का निर्देश है। कोलबुक ने भी लिखा है कि व्याघ्राद की वार्तिकों का उल्लेख अनेक ग्रंथकारों ने किया है। अतः यह व्याघ्रभूति वैयाकरण ज्ञात होते हैं।56 (क) माठर
माठर सांख्य कारिका पर माठरवृत्ति के रचयिता के रूप में प्रसिद्ध हैं। अतः कपिल आदि सांख्य आचार्यों के साथ उनका ही उल्लेख होना संभव है। दृष्टिवाद में उनके मत का निराकरण होना असंभव है क्योंकि उनका काल प्राय: ई.सन् की प्रथम शताब्दी से पूर्व नहीं है। प्राचीन काल में माठर नामक वैदिक ऋषि भी हुए हैं। मौद्गल्यायन
तैतरीय उपनिषद् में एक मौद्गल्यायन का उल्लेख है। एक मोद्गलायन बुद्धदेव के शिष्य भी थे। इन दोनों में से अकलंक ने अक्रियावादी में किसका नामोल्लेख किया है। यह कहना शक्य नहीं है।
__ अकलंक ने मरीचिकुमार, कपिल आदि को अक्रियावादी कहा है और सिद्धसेन ने इन्हें क्रियावादी माना है।
निष्कर्ष रूप में कहा जा सकता है कि क्रियावाद और अक्रियावाद का चिन्तन आत्मा को केन्द्र में रखकर किया गया है। आत्मा है। वह पुनर्भवजन्मा है। कर्म का कर्ता क्रिया की दार्शनिक पृष्ठभूमि
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