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आचार पर बल देते हैं। ज्ञानवाद और आचारवाद दोनों एकांगी होने से मिथ्यादृष्टि की श्रेणी में आते हैं।
जीवन एक मुखी नहीं होता, वह अनेक वृत्तियों, विचारों, चिन्तनों एवं क्रियाओं का समवाय होता है। उसे समग्रभाव से समझा जाये यही सम्यग्दृष्टि है।
एकांगीदृष्टि से सत्योपलब्धि नहीं हो सकती। विनय की अपनी उपादेयता है पर उसके साथ उन तत्त्वों को महत्त्व दिया जाना चाहिए जो विनय को सत्योन्मुखी बनाते हैं। विनयवादियों की अपनी कोई विशेष वेशभूषा या शास्त्र नहीं, वे केवल मोक्ष को ही जीवन का सर्वोपरि लक्ष्य मानते हैं। विनयवादियों की विचारधारा के बत्तीस प्रकार हैं। 1. देवता 2. राजा 3.यति 4. ज्ञाति 5. स्थविर 6.कृपण 7. माता 8. पिता
उचितदान मन वचन काया विनयवादी दार्शनिक
इस परम्परा के कुछ आचार्य इस प्रकार हैं- (1) वशिष्ठ (2) पाराशर (3) जनुकर्णि (4) वाल्मिकी (5) रोमर्षि (6) सत्यदत्त (7) व्यास (8) एलापुत्र (9) औपमन्यव (10) ऐन्द्रदत्त (11) अयस्थूण।
1.वशिष्ठ- इतिहास में वशिष्ठनाम के कई व्यक्ति हो चुके हैं। उदाहरणार्थ धर्मसूत्र के रचयिता, योग वशिष्ठ, रामायण के रचयिता और दस महर्षियों में भी एक वशिष्ठ नाम के व्यक्ति रहे हैं। अकलंक ने किस वशिष्ठ को उल्लिखित किया है, निर्णय कर पाना कठिन है। तथापि आगम नामों को देखते हुए वैदिक ऋषि वशिष्ठ का ही ग्रहण संगत लगता है। जिन्होंने अथर्ववेद के मंत्रों का उद्धार किया था।
2. पाराशर- वशिष्ठ कुल में सात ब्रह्मवादी हुए है। उनमें प्रथम वशिष्ठ थे. दूसरे पाराशर । उसी पाराशर का पुत्र कृष्ण द्वैपायन व्यास था। इसलिये उसे पाराशर्य भी कहते थे। वशिष्ठ के पश्चात् पाराशर नाम ही उचित प्रतीत होता है। सिद्धसेनगणी की टीका में पाराशर नाम पाया जाता है। .
3. जनुकर्णि- पुराणों के आधार पर वाष्कल ने चार संहिताएं बनाकर अपने चार शिष्यों को पढ़ाई थी। उनमें जातुकर्ण्य भी एक थे। श्रीमद् भागवत के बारहवें स्कंध के वेदशाखा प्रकरण में जातुकर्ण्य को ऋग्वेद का आचार्य माना गया है। वायुपुराण के क्रिया की दार्शनिक पृष्ठभूमि
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