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व्यक्ति छह मास की अवधि में मर जाता है तो प्रहारकर्ता पांच क्रियाओं से स्पृष्ट होता है। यदि छह मास के बाद मरता है तो प्राणातिपात क्रिया नहीं होती। प्राणातिपात को छोड़कर शेष चार क्रियाएं लगती हैं। ___इसके पीछे तर्क यह है कि छह मास की अवधि में होने वाली मृत्यु प्रहार हेतुक है। उसके पश्चात् होने वाली परिणामकृत मृत्यु है। वृत्तिकार के अनुसार यह नियम व्यवहार नय की अपेक्षा से है। निश्चय नय से प्रहार हेतुक मरण किसी भी अवधि में हो, उससे प्राणातिपात की क्रिया संभव हो जायेगी। प्रस्तुत प्रसंग में यह प्रश्न भी स्वाभाविक है कि छह मास की अवधि का ही निर्धारण क्यों किया गया ? शास्त्रकारों ने इसका कोई स्पष्टीकरण नहीं किया। डॉ. सिकदर ने भारतीय दण्ड संहिता की धारा 299, 300 और 302 के साथ इस छह मास की अवधि वाले नियम का औचित्य बतलाया है।86ख
क्रिया के साथ तीन परिणमन जुड़े हुए हैं-प्राणातिपात का अतीतकालीन संस्कार, जो प्राणातिपात पाप-स्थान कहलाता है। वर्तमान में होने वाली प्राणातिपात की प्रवृत्ति जो प्राणातिपात क्रिया कहलाती है और प्राणातिपात से होने वाला कर्म-बंधन जो प्राणातिपात की परिणति कहलाता है। 7 गौतम के द्वारा पूछे गये प्रश्न और महावीर के दिये गये उत्तर इस तथ्य की पुष्टि करते हैं
गौतम- अत्थि णं भंते ! जीवाणं पाणाइवाएणं किरिया कज्जइ? महावीर-हंता अत्थिा गौतम- सा भंते ! किं पुट्ठा कज्जइ ? अपुट्ठा कज्जइ ?
महावीर- गोयमा ! पुट्ठा कज्जइ, नो अपुट्ठा कज्जइ, जावनिव्वाघाएणं छद्दिसिं, वाघायं पडुच्च सिया तिदिसि, सिया चउदिसिं, सिया पंचदिसिं।
गौतम-सा भंते ! किं कडा कजइ ! नो अकडा कज्जइ।
गोयमा! कडा कज्जइ, नो अकडा कज्जइ सा भंते! किं अत्तकडा कज्जइ? परकडा कज्जइ? तदुभय कडा कज्जइ?
सा भन्ते! किं अत्तकडा कज्जइ? परकडा कज्जइ? तदुमय कडा कज्जइ?
महावीर- गोयमा ! सा अनकडा कज्जए, नो परकडा कज्जइ, नो तदुभय कडा कज्ज।
भन्ते! क्या जीवों की प्राणातिपात क्रिया होती है? हां, होती है। भन्ते! क्या वह स्पृष्ट होती है अथवा अस्पृष्ट होती है?
अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
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