________________
केवल मनुष्य के ही होता है। पंचेन्द्रिय तिर्यञ्च को देश प्रत्याख्यानी कहा है। नैरयिक जीव अप्रत्याख्यानी हैं। चतुरिन्द्रिय जीवों तक तथा वाणव्यंतर, ज्योतिष्क और वैमानिक देवों का आलापक नैरयिक जीवों की तरह ही वक्तव्य है।
गौतम ने पूछा-भंते! सर्वोत्तम गुण प्रत्याख्यानी. देशोत्तर गुण प्रत्याख्यानी. और अप्रत्याख्यानी में कौन किससे अल्प, अधिक, तुल्य और विशेषाधिक है ? समाधान में
कहा
जीव
संयत संयतासंयत असंयत
सबसे अल्प असंख्येय गुण अधिक अनन्तगुण अधिक
मनुष्य संयत
सबसे अल्प संयतासंयत
संख्येय गुण अधिक असंयत
असंख्येय गुण अधिक पंचेन्द्रिय तिर्यच संयतासंयत
सबसे अल्प असंयत
असंख्येय गुणा अधिक संयत का अर्थ है- सावद्य प्रवृत्ति से विरत होना। संयम का परिणाम मूल क्रिया है। प्रत्याख्यान उत्तर क्रिया है। प्रत्याख्यान से संयम पुष्ट होता है।
प्रत्याख्यान आयुष्य-बंध का हेतु भी बनता है। सामान्य जीवों के लिये प्रत्याख्यान, अप्रत्याख्यान और प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यान तीनों आयुष्य-बंध में हेतु बनते हैं। वैमानिक देव का आयुष्य-बंध भी इन तीनों के होता है। शेष तेईस दण्डकों के आयुष्य का बंध अप्रत्याख्यानी जीव ही करते हैं। साधु प्रत्याख्यानी, श्रावक प्रत्याख्यानाप्रत्याख्यानी होते हैं इसलिये उनके वैमानिक के अतिरिक्त किसी अन्य आयुष्य का बंध नहीं होता। जयाचार्य ने भगवती जोड़ में इसे स्पष्ट किया है।141
जैन दर्शन का उद्देश्य है- निर्वाण। निर्वाण कर्म की शांति से प्राप्य है। कर्म की शांति सर्वविरति से होती है। सर्व-विरति प्रत्याख्यानीय चारित्र मोह के विलय से होने
80
अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया