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की अपेक्षा, बहुत जीवों को बहुत जीवों के शरीर की अपेक्षा, बहु शरीर की अपेक्षा कितनी क्रियाएं होती हैं ?
जीवों को एक जीव
महावीर - गौतम ! तीन - चार या पांच क्रियाएं होती हैं। 94 (क) शेष चार शरीर वैक्रिय, आहारक, तैजस्, कार्मण का विनाश हो सकता है इसलिए उनकी अपेक्षा तीन या चार क्रियाएं होती हैं उनके पांचवीं क्रिया नहीं होती । नारक से वैमानिक तक इसी प्रकार आलापक ज्ञातव्य हैं।
प्रश्न यह होता है कि नैरयिक अधोलोक में स्थित है। आहारक शरीरी मनुष्य लोक में स्थित होता है। अतः नारक आहारक शरीर की अपेक्षा तीन-चार क्रिया वाला कैसे हो सकता है ?
समाधान स्वरूप कहा गया है कि नारक जीव के पूर्व त्यक्त शरीर की अस्थि आदि से आहारक शरीर की स्पर्शना-परितापना हो सकती है। अविरति की अपेक्षा नारक जीव तीन-चार क्रिया से स्पृष्ट होता है।
कायिकी क्रिया पंचक और वेदना समुद्घात
समुद्घात शब्द यौगिक है। सम + उद् + घात • इन तीन शब्दों के योग से समुद्घात शब्द निष्पन्न होता है, इसका अर्थ है - आत्म प्रदेशों का शरीर से बाहर निकलना। समुद्घात सात हैं- वेदना, कषाय, मारणान्तिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और केवल । प्रस्तुत प्रसंग में केवल वेदना समुद्घात की चर्चा ही प्रासंगिक है।
प्रबल असातावेदनीय कर्म का उदय होता है तब वेदना समुद्घात होता है। शरीर से जिन पुद्गलों को बाहर निकाला जाता है, वे तत्र स्थित प्राण- भूत- जीव-सत्व का हनन करते हैं। उन जीवों में कंपन होता है, संघात, क्लामना और परिताप होता है, प्राणों का अतिपात भी हो जाता है। यही कारण है कि उस जीव के तीन-चार क्रियाएं होती हैं। इसी प्रकार कषाय, मारणान्तिक, वैक्रिय, आहारक समुद्घात होता है। विशेष यह है कि पृथ्वी, अप्, तैजस, वनस्पति और तीन विकलेन्द्रिय जीवों के वैक्रिय समुद्घात नहीं होता। आहारक समुद्घात केवल मनुष्य ही कर सकता है, अन्य नहीं।
केवली समुद्घात करनेवाले भावितात्मा अणगार के अन्तिम समय में निर्जरित पुद्गल सूक्ष्म होते हैं। इसलिये केवली के कायिकी आदि क्रियाएं नहीं होती । मात्र ऐर्यापथिक क्रिया होती है। इन तथ्यों को निम्नांकित चार्ट से भी समझा जा सकता है
क्रिया के प्रकार और उसका आचारशास्त्रीय स्वरूप
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