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को मिथ्यात्व क्रिया (Urges that lead to deluded world view) कहा है।' अजीव क्रिया के अन्तर्गत ऐपिथिकी और सांपरायिकी को लिया है। 'ईर्यापथ' शब्द का प्रयोग जैन और बौद्ध दोनों के साहित्य में मिलता है। बौद्ध पिटकों में कायानुपश्यना के अर्थ में ईर्यापथ का प्रयोग हुआ है। क्रिया का नियम
'गौतम ने महावीर से पूछा-भंते ! अन्यतीर्थिक एक समय में दो क्रियाएं मानते हैं। जिस समय जीव सम्यक् क्रिया करता है, उसी समय मिथ्या क्रिया भी करता है- यह कैसे ?
भगवान महावीर ने कहा- गौतम ! जो ऐसा कहते हैं, वह मिथ्या है। सम्यक् और मिथ्या- इन दोनों क्रियाओं का एक साथ होना संभव नहीं है। मन, वचन, काया का व्यापार एक समय में एक ही प्रकार का होता है।' उत्थान, कर्म, बल, वीर्य, पुरुषकार
और पराक्रम भी एक समय में एक ही होता है। सम्यक्त्व और मिथ्यात्व दोनों विरोधी क्रियाएं हैं, एक साथ कैसे होगी ? जीवा जीवाभिगम सूत्र इसी सिद्धांत की पुष्टि करता है कि एक समय में दो क्रियाएं नहीं की जा सकती। इसी प्रकार ऐर्यापथिकी और सांपरायिकी क्रिया भी एक साथ नहीं होती। सकषायी के साम्परायिक क्रिया होती है, अकषायी के ऐर्यापथिक। एक अकषायोदय से उत्पन्न है दूसरी कषायोदय से, इसलिये दोनों साथ नहीं होती। एक जीव एक समय में एक ही क्रिया करता है। ___ भगवान महावीर के अनुसार एक समय में दो क्रियाएं संभव नहीं है। कुछ दार्शनिक दो क्रियाओं का एक साथ होना मानते है। भाष्यकार आचार्य महाप्रज्ञ के अनुसार भगवती सूत्र में उनका नाम निर्देश नहीं है किन्तु प्रकरण की दृष्टि से यह मान्यता किसी श्रमण-सम्प्रदाय की प्रतीत होती है। प्रस्तुत प्रसंग में आजीवक मत की संभावना की जा सकती है।10
महावीर और बुद्ध के युग में यह मत काफी प्रभावशाली और व्यापक रहा है। विक्रम की आठवीं शताब्दि तक उसका अस्तित्व समाप्त प्राय: हो गया। आज उस परम्परा का साहित्य उपलब्ध नहीं है किन्तु जैन और बौद्ध परम्परा के साहित्य में आज भी तत्सम्बन्धी सामग्री मिल जाती है। आचार्य धनगुप्त के शिष्य गंगमुनि ने भी द्वैक्रियवाद की स्थापना की, जो पांचवें निह्नव कहलाएं।
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अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया