________________
कई व्यक्ति क्रोध, मान, माया, लोभ, हास्य, रति, अरति, शोक के लिये, स्त्री पुरूष, नपुंसक के लिये, काम-भोग के लिये अथवा अर्थ, काम और धर्म के लिये, स्ववश या परवशता से, प्रयोजन से या बिना प्रयोजन ही त्रस और स्थावर जीवों की हिंसा करते है। 50
हिंसा में प्रत्यक्ष दिखाई देने वाले दोषों को नहीं देखकर, जो उसमें रंजित हो जाता है, आचारांग में उस हिंसक को आर्त, परिजीर्ण, दुः संबोध और अविज्ञायक कहा है। 51 (13) ईर्यापथिकी क्रिया- ईर्यापथिकी क्रिया पुण्य कर्म-बंध का कारण है। यह क्रिया केवल वीतराग के ही होती है। ऐर्यापथिकी क्रिया के लिए आवश्यक साधना निम्नानुसार है
(i) आत्म भाव में रमण, परभाव से विरति (ii) इन्द्रिय सुखों की निवृत्ति
(iii) बाह्य - आभ्यन्तर संयोगों का परित्याग
(iv) यतना पूर्वक समिति की आराधना
(v) मन वचन काया की गुप्ति से युक्त
1
दूसरा वर्गीकरण
ठाणांग सूत्र पर आधारित 72 क्रियाएं संक्षेप में निम्नानुसार है
क्रिया के दो प्रकार
44
सम्यक्त्व
जीव
ऐर्या
क्रिया के दो प्रकार
का
मिथ्यात्व
आधिकरणिकी
अनुपरतकाय क्रिया दुष्प्रयुक्तकाय क्रिया संयोजनाधिकरणिकी निर्वर्तनाधिकरणिकी
क्रिया के दो प्रकार
O
प्रादोषिकी
जीव प्रादोषिकी अजीव प्रादोषिकी
अजीव
परायिक
7
पारितापनिकी
स्वहस्त पारितापनिकी परहस्त पारितापनिकी
अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया