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विनयवाद स्वरूप एवं परिचय
विनयवाद का आधार विनय है। 1 विनयवादियों के अभिमत से किसी भी सम्प्रदाय या गृहस्थ की निंदा नहीं करनी चाहिये। सब के प्रति विनम्रता का व्यवहार होना चाहिये।82 विनय करना विनयवाद का परम लक्ष्य है। विनय किसका किया जाये यह प्रश्न निरर्थक है। गधे से लेकर गाय तक, चण्डाल से लेकर ब्राह्मण तक, जलचर, स्थलचर, खेचर, उरपरिसर्प आदि किसी भी जाति का प्राणी क्यों न हो, सबके प्रति विनय होना चाहिए।
चूर्णिकार ने नियुक्ति गाथा की व्याख्या में दाणामा, पाणामा, आदि प्रव्रज्याओं को विनयवादी बतलाया।83 भगवती में उनका स्वरूप निम्नोक्त प्रकार से निर्दिष्ट है।
ताम्रलिप्ति नगरी में तामली गाथापति रहता था। उसने पाणामा प्रव्रज्या स्वीकार की। प्रव्रज्या के पश्चात् तामली जहां कहीं इन्द्र, स्कंध, रुद्र, शिव, वैश्रमण, दुर्गा, चामुण्डा आदि देवियों तथा राजा, ईश्वर, तलवर, मांडलिक, कौटुम्बिक, ईभ्य, श्रेष्ठी, सेनापति, सार्थवाह, कौओं, कुत्ता, या चंडाल को देखता तो उन्हें प्रणाम करता। उन्हें ऊपर देखता तो ऊपर प्रणाम करता और नीचे देखता तो नीचे प्रणाम करता।84 इसी प्रकार पूरण गाथापति ने 'दाणामा' प्रव्रज्या स्वीकार की थी। प्रव्रज्या के बाद वह चार पुट वाला लकड़ी का पात्र लेकर 'बेभेल' सन्निवेश नामक गांव में गया वहां जो भोजन पात्र के पहले पुट में गिरता, उसे पथिकों को, जो भोजन दूसरे पुट में गिरता, उसे कौओं और कुत्तों को दे देता। तीसरे पुट का मच्छ-कच्छों को और चौथे पुट का भोजन स्वयं खाता था।85
वृत्तिकार शीलांकाचार्य ने भी विनय का अर्थ विनम्रता ही किया है जो विमर्शनीय है। प्रस्तुत प्रकरण में विनय का अर्थ आचार अधिक संगत प्रतीत होता है। प्राचीन साहित्य में आचार के अर्थ में विनय का काफी प्रयोग हुआ है। ज्ञाता में जैन धर्म को विनयमूलक धर्म कहा है। थावच्चापुत्र ने शुकदेव से कहा-मेरे धर्म का मूल विनय है।86 बौद्धदर्शन में भी ऐसी दृष्टि का प्रतिपादन है जो आचार पर अधिक बल देती थी। केवल आचार से शील-शुद्धि मानने वाले को वहां 'शीलत्वत परामास' कहा गया है। केवल ज्ञानवादी और केवल आचारवादी, ये दोनों परम्पराएं उस समय विद्यमान थीं। विनम्रता आचार का ही एक अंग है। इसलिये आचार में उसका समावेश हो जाता है किन्तु विनयवाद का केवल विनम्रता अर्थ किया जाये तो आचारवाद को उसमें समाहित नहीं किया जा सकता। ज्ञानवादी के मत में जैसे ज्ञान की प्रधानता है, वैसे ही आचारवादी
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अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया