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आत्मा ही आत्मा है। आत्मा के अतिरिक्त कुछ नहीं। पृथ्वी, जल, तेज आदि में भी एक आत्मतत्त्व व्याप्त है।45 अनेकवादी
वैशेषिक अनेकवादी दर्शन हैं क्योंकि इसमें धर्म-धर्मी, अवयव-अवयवी आदि को भिन्न-भिन्न माना गया है। मितवादी
__ इस मत के अनुसार जीव अनेक होते हुए भी उनकी संख्या में परिमित हैं। आचार्य हेमचन्द्र द्वारा रचित अन्ययोगव्यवच्छेदिका में उसका उल्लेख किया गया है।46 इसके अलावा यह एक औपनिषदिक मत है।
___ आत्मा को अंगुष्ठ पर्व जितना अथवा श्यामाक तंदुल जितना माना गया है। इसे पौराणिक मत भी माना गया है जो लोक को केवल सात द्वीप-समुद्र मात्र मानता है। निर्मितवादी
जो सृष्टि को ईश्वर की रचना मानते है वे निर्मितवादी विचारधाराएं हैं। न्याय और वैशेषिक दर्शन इसी प्रकार की विचारधाराए हैं। नैयायिक, वैशेषिक आदि लोक को ईश्वरकृत मानते हैं।47 सातवादी
वृत्तिकार के अनुसार सातवादी बौद्धों का अभिमत है।48 सूत्रकृतांग से भी इसकी पुष्टि होती है।” सुख-प्राप्ति यद्यपि चार्वाक का साध्य है फिर भी वृत्तिकार ने उसे सातवादी नहीं माना क्योंकि ‘सातं सातेण विज्जति' सुख का उत्पादक कारण सुख ही है यह कार्य - कारण का सिद्धांत चार्वाक को मान्य नहीं हैं। सूत्रकृतांग के चूर्णिकार ने भी सातवाद को बौद्धों का सिद्धांत माना है। समुच्छेदवादी
इस मत के अनुसार प्रत्येक पदार्थ क्षणिक है। दूसरे क्षण में उसका उच्छेद हो जाता है। इस अर्थ में बौद्ध दर्शन समुच्छेदवादी है। नित्यवादी
सांख्याभिमत सत्कार्यवाद के अनुसार प्रत्येक पदार्थ नित्य है।50 कारण और
क्रिया की दार्शनिक पृष्ठभूमि