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अपेक्षा भेद के आधार पर दोनों मतों में समन्वय किया है। इसके साथ ही उन्होंनें यह भी ना है कि अंगुत्तरनिकाय में बुद्ध को अक्रियावादी कहा गया है। 39
अक्रियावाद के फलित है - 1. आत्मा का अस्वीकार, 2. आत्मा कर्तृत्व का अस्वीकार, 3. कर्म का अस्वीकार 4 पुनर्जन्म का अस्वीकार | 40 अक्रियावादी को नास्तिकवादी, नास्तिकप्रज्ञ, नास्तिकदृष्टि भी कहा गया है। 41
अक्रियावाद के प्रकार
स्थानांग सूत्र में अक्रियावादी के आठ प्रकारों का उल्लेख किया गया है। 42
3. मितवादी
6. समुच्छेदवादी
1. एकवादी 2. अनेकवादी
4.
निर्मितवादी 5. सातवादी 7. नित्यवादी 8. नास्तिपरलोकवादी
एकवादी व निर्मितवादी के अभिमत का निरूपण सूत्रकृतांग में मिलता है । 43 सातवादी तथा नास्ति परलोकवाद का भी विवरण सूत्रकृतांग में प्राप्त है। 44 अक्रियावादी दार्शनिक
आठ वादों में छह वाद एकान्तदृष्टि वाले हैं। समुच्छेदवाद और नास्तिपरलोकवाद ये दो अनात्मवादी विचारधाराएं हैं। उपाध्यायशोविजयजी ने धर्म्यंश की दृष्टि से जैसे चार्वाक को नास्तिक अक्रियावादी कहा है, वैसे ही धर्मांश की दृष्टि से सभी एकान्तवादियों को नास्तिक कहा है। 44 इन सभी विचारधाराओं का संकलन करते समय सूत्रकार के सामने कौनसी विशिष्ट दार्शनिक परम्पराएं रही हैं, इसका उत्तर देना कठिन है किन्तु वर्तमान में उन धाराओं की संवाहक दार्शनिक परम्पराएं इस प्रकार हैं- 1. ब्रह्माद्वैतवादी - वेदान्त, 2. विज्ञानाद्वैतवादी - बौद्ध और 3. शब्दाद्वैतवादी - वैयाकरण ।
एकवादी
ब्रह्माद्वैतवादी के अनुसार ब्रह्म, विज्ञानद्वैतवादी के अनुसार विज्ञान और शब्दाद्वैतवादी के मत से शब्द ही पारमार्थिक तत्त्व है। इसलिये इन्हें एकवादी के अन्तर्गत लिया है । अनेकान्त की भूमिका पर संग्रह नय की दृष्टि से सभी पदार्थ एक माने गये हैं किन्तु दूसरी ओर व्यवहार नय से अनेक भी हैं।
कवादी के अभिमत से एक ही आत्मा नाना रूपों में प्रतिभासित होती है जैसे एक ही चन्द्रमा अनेक जलाशयों में अनेक रूपों में प्रतिबिम्बित होता है। संसार में सर्वत्र
अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया
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