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1. कौल्कल
2. काणेविद्धि 3. कौशिक 4. हरिश्मश्रुमान 5. रोमश 6. हारीत 7. मांछपिक
8. अश्वमुण्ड 9. आश्वलायन इनमें से कुछ आचार्यों के सम्बन्ध में प्राप्त तथ्य निम्नानुसार हैंकाणेविद्धि (काण्ठेविद्धि)
पाणिनीकृत व्याकरण में काणेविद्धि के स्थान पर काण्ठेविद्धि नाम आता है।29 सामवेद में भी इनका उल्लेख है जिससे सूचित होता है कि ये सामवेद के आचार्य थो30(क) कौशिक
पाणिनी व्याकरण 30(ख) के महाभाष्य में लिखा है- विश्वामित्र ने तपस्या की मैं अनृषि न रहूं। वे ऋषि हो गए। दूसरी बार तपस्या की मैं अनृषि का पुत्र न रहूं। वे गार्गी ऋषि हो गए। तीसरी बार तप का लक्ष्य था कि मैं अनृषि का पौत्र न रहूं। वे कुशिक ऋषि हो गए। अत: कुशिक का पुत्र होने से कौशिक कहलाये। ऋग्वेद में जिन सात ऋषियों के नामों का उल्लेख है उनमें एक विश्वामित्र भी है। अथर्ववेद में भी विश्वामित्र नाम आता है। कौशिक नामक एक ऋषि अथर्वसूत्रों के व्याख्याकार भी हुए हैं। कौशिक गृहसूत्र और कौशिक स्मृति नामक दो ग्रंथ भी उपलब्ध है। अतः यहां कौशिक से वैदिक ऋषि विश्वामित्र ही प्रतीत होते हैं। माञ्छपिक
धवल टीका में माञ्छपिक के स्थान पर मांधयिक नाम है। सिद्धसेनगणी की टीका में मांधनिक नाम मिलता है32 बृहदारण्यक में मन्ध सिद्धांत का निर्देश है। कहा जाता है कि श्वेतकेतु का पिता उद्दालक उसका मूल रचयिता था। श्री भगवद् दत्त ने अपने वैदिक वाङ्मय के इतिहास में उद्दालक को आरुणिकी परम्परा का बताया है।34
उसमें तीसरे नम्बर का नाम 'मधुक पैड्गय' है। यह नाम माञ्चपिक से बहुत मिलता-जुलता है। हारित
श्री भगवद्दत्तजी ने लिखा है कि हेमाद्रि सिद्धकल्प पर टीका लिखने के लिये हरितसेन का स्मरण किया है। एक हरीत धर्मसूत्र के रचयिता हुए है। वे कृष्ण यजुर्वेदशाखा
अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया