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प्रकार विभिन्न वादों को चार श्रेणियों में विभक्त किया है-1. क्रियावाद 2. अक्रियावाद 3. अज्ञानवाद 4. विनयवाद ।
समवसरण में इन चारों का समाहार हो जाता है। नियुक्तिकार ने अस्ति-नास्ति के आधार पर क्रियावाद-अक्रियावाद तथा अज्ञान और विनय के आधार पर अज्ञानवाद एवं विनयवाद की व्याख्या है। मूल आगम में उनके भेदों का उल्लेख नहीं मिलता किन्तु सूत्रकृतांग की नियुक्ति में उन चार वादों के 363 भेदों का उल्लेख प्राप्त होता है। उनके अर्थ की भी स्वतंत्र विषयगत विशिष्टताएं हैं। दार्शनिकों ने इस वर्गीकरण में अनेक मुख्य तथा गौण सम्प्रदाय को परिगणित किया है जिनकी उत्पत्ति थोड़े - बहुत मतभेद को लेकर हुई थी। वीरसेनाचार्य ने लिखा है कि जय धवला में दृष्टिवाद के ‘सूत्र' नामक दूसरे खण्ड में नास्तिवाद, क्रियावाद, अक्रियावाद, अज्ञान - ज्ञानवाद और वैनियिकवाद का वर्णन है।20 किन्तु समवाय तथा नंदी में इस प्रकार का उल्लेख प्राप्त नहीं है। नंदी की चूर्णि तथा वृत्ति में भी उसका कोई संकेत नहीं है। फिर भी दृष्टिवाद नाम से ही प्रमाणित होता है कि उसमें समस्त दृष्टियों का निरूपण है। चार समवसरण या प्रमुख वादों का निरूपण निम्नानुसार हैं
क्रियावाद स्वरूप एवं परिचय
जो आत्मवाद, लोकवाद एवं कर्मवाद को जानता है या नौ तत्त्वों को सर्वकर्म - विमुक्ति रूप मोक्ष के संदर्भ में स्वीकार करता है, वही वस्तुतः क्रियावाद का ज्ञाता एवं उपदेष्टा है। भगवान महावीर से पूछा गया- भंते ! क्रियावादी कौन है ? उत्तर मिला-जो आस्तिकवादी, आस्तिकप्रज्ञ, आस्तिकदृष्टि है, वह क्रियावादी है।21
सूत्रकृतांग में कहा- जो आत्मा, लोक, जन्म, मरण, च्यवन, उपपात को जानता है। अधोलोक स्थित प्राणियों के विवर्तन को जानता है। आश्रव, संवर, दु:ख, निर्जरा को जानता है वह क्रियावाद का प्रतिपादन कर सकता है।22 क्रियावाद की विस्तृत व्याख्या दशाश्रुतस्कंध में प्राप्त है। उसके आधार पर क्रियावाद के चार फलित हैं"23
1. अस्तित्ववाद - आत्मा एवं लोक के अस्तित्व की स्वीकृति। 2. सम्यग्वाद - नित्य - अनित्य दोनों अर्थों की स्वीकृति। 3. पुनर्जन्मवाद - पुनर्जन्म की स्वीकृति 4. आत्म - कर्तृत्ववाद - पुरूषार्थवाद की स्वीकृति।
अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया