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क्रियावाद में उन सभी मतवादों का समावेश किया गया है जो आत्मा, लोक, गति, आगति, शाश्वत-अशाश्वत, उपपात-च्यवन, जन्म-मरण, आश्रव-निर्जरा, संवर आदि तथा आत्म-कर्तृत्ववाद में विश्वास करते थे। क्रियावाद का तात्पर्य आत्मवाद, कर्मवाद आदि सभी सिद्धांतों की समन्विति से है। तत्त्वार्थ-वार्तिक, षड्दर्शन समुच्चय आदि ग्रंथों में क्रियावाद के कुछ आचार्यों का नामोल्लेख हुआ है।24
नियुक्तिकार25 एवं चूर्णिकार दोनों ने क्रियावाद के प्रवादों का उल्लेख किया है। क्रियावादी जीव - अजीव आदि नवतत्त्वों के अस्तित्व को मानते हैं। काल, ईश्वर, आत्मा, नियति और स्वभाव का स्वत: परत : और नित्य - अनित्य रूप से जीव आदि नौ तत्वों के साथ सम्बन्ध होने से180 क्रियावाद की विभिन्न शाखाएं बनती हैं।
जीव अजीव पुण्य पाप आश्रव संवर निर्जरा बंध मोक्ष स्वतः
परतः नित्य
अनित्य काल, स्वभाव, नियति, ईश्वर, आत्मा काल, स्वभाव, नियति, ईश्वर, आत्मा
अनित्य काल, ईश्वर, आत्मा, नियति, स्वभाव काल, ईश्वर, आत्मा, नियति, स्वभाव
चूर्णिकार ने 180 (9x2x2x5=180) प्रवादों का जो विवरण प्रस्तुत किया, वह भी विकल्प की व्यवस्था जैसा ही लगता है। इससे भी धर्म - प्रवादों की विशेष अवगति नहीं मिलती। हर्मन जेकोबी ने वैशेषिकों को क्रियावादी कहा है।26 किन्तु इस स्वीकृति का कोई हेतु उन्होनें प्रस्तुत नहीं किया। डॉ. जे.सी.सिकदर ने श्रमण-निर्ग्रन्थों एवं न्याय-वैशेषिकों को क्रियावाद के अन्तर्गत लिया है। उस समाहार का हेतु उन्होंने आत्मा के अस्तित्व और कर्तृत्व की स्वीकृति को माना है।27 विमर्शनीय यह है कि वैशेषिकों का मन्तव्य क्रियावाद के सर्वथा अनुकूल नहीं है। सूत्रकृतांग चूर्णि में तो उसे स्पष्ट रूप से अक्रियावादी कहा है।28 क्रियावादी दार्शनिक
तत्त्वार्थ राजवार्तिक के प्रथम अध्याय के 20 वें सूत्र के वार्तिक में क्रियावादी आचार्यों के नाम इस प्रकार हैं
नित्य
क्रिया की दार्शनिक पृष्ठभूमि