________________
4. क्रियावादी - जीवन नश्वर है इसीलिए अप्रमत्तता की साधना का लक्ष्य।
अक्रियावादी - ‘प्राप्त को छोड़ अप्राप्त की आकांक्षा' भूल का चिन्तन। 5. क्रियावादी - शुभाशुभ कर्मों का फल अवश्यंभावी है।
अक्रियावादी - कर्मों का फल नहीं है। 6. क्रियावादी - अस्तित्व में संदेह मत करो, आत्मा अमूर्त है, नित्य है।
अक्रियावादी - पंचभूतों से निष्पन्न चेतना उनके साथ ही विलय हो .
जाती है। शरीर नष्ट होने पर आत्मा का अस्तित्व नहीं। अज्ञानवाद स्वरूप एवं परिचय
अज्ञानवाद का उल्लेख सूत्रकृतांग में मिलता है। अज्ञानवाद का मूल आधार अज्ञान है।57 अज्ञानवादियों के अभिमत से ज्ञान ही सब समस्याओं का मूल है। ज्ञान की तुलना में श्रेयस्कर अज्ञान है। अज्ञानवादियों का कथन है- अनेक दर्शन हैं। अनेक दार्शनिक हैं। पूर्णज्ञान किसी में संभव नहीं। यदि उन दार्शनिकों का ज्ञान सत्य और पूर्ण होता तो परस्पर विरोधाभास नहीं होता। अत: सत्य-असत्य का निर्णय कर पाना कठिन है। सूत्रकृतांग के टीकाकार श्री शीलांकसूरि ने अज्ञानवाद को तीन अर्थों में प्रस्तुत किया हैं
(अ) सम्यग् ज्ञान से रहित श्रमण - ब्राह्मण अज्ञानी हैं।58 (ब) शून्यवादी बौद्धा59 .. (स) अज्ञान को श्रेष्ठ मानने वाले।60
अज्ञानवादी आत्मा के अस्तित्व में संदेह करते है, उनके अनुसार आत्मा है या नहीं? अगर है तो भी जानने से क्या लाभ ? दूसरे शब्दों में, इनके मत से अज्ञान ही श्रेयस्कर है।
अज्ञानवाद का आधार- अज्ञानवादियों के मुख्य तीन तर्क है जिनके आधार पर वे अज्ञान को श्रेयस्कर मानते है।
1. मनुष्य अच्छाई - बुराई दोनों को जानता है। जानते हुए भी बुराई को छोड़ नहीं सकता, अच्छाई अपनाने में सक्षम नहीं होता। इस मनोवृत्ति ने निराशा को जन्म दिया। अत : यह चिन्तन उभरा कि उस ज्ञान की क्या उपयोगिता जो बुराई से मुक्त नहीं करता।
क्रिया की दार्शनिक पृष्ठभूमि
13