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कार्यरूप में प्रत्येक वस्तु का अस्तित्व पहले से विद्यमान है। कोई भी पदार्थ सर्वथा नवीन रूप में न उत्पन्न होता है न नष्ट होता है। केवल उसका आविर्भाव-तिरोभाव होता रहता है।
नियुक्तिकार ने अक्रियावाद के 84 प्रवादों का उल्लेख किया है। 51 अक्रियावाद के अनुसार कोई भी पदार्थ स्थिर नहीं है। उत्पत्यन्तर ही उसका विनाश हो जाता है। ऐसी स्थिति में पुण्य-पाप की क्रिया किसी तरह संभव नहीं है। इसलिये पुण्य-पाप के अतिरिक्त सात पदार्थ के स्वतः और परत: दो-दो भेद हैं- 7x 2 = 14। इनका काल, यदृच्छा, नियति, स्वभाव, ईश्वर और आत्मा इन छह तत्त्वों से गुणन करने पर 14 × 6 = 84 भेद होते हैं। 52
जीव अजीव आश्रव संवर निर्जरा बंध
मोक्ष
स्वतः
परत:
काल, ईश्वर, आत्मा, नियति, स्वभाव, यदृच्छा काल, ईश्वर, आत्मा, नियति, स्वभाव, यदृच्छा आचार्य अकलंक ने अक्रियावाद के कुछ प्रमुख आचार्यों का नामोल्लेख इस प्रकार किया है- 1. मरीचिकुमार 2. उलूक 3. कपिल 4. गार्ग्य 5. व्याघ्रभूति 6 . वाइलि 7. माठर 8. मौद्गल्यायन आदि। 3
मरीचिकुमार
डॉ. सिकदार ऋषभ के पौत्र को ही उल्लिखित मरीचिकुमार मानते हैं और यह उचित भी प्रतीत होता है क्योंकि मरीचि के पश्चात् ही कपिल का नाम आता है जो सांख्य दर्शन के संस्थापक माने जाते हैं। जिनसेन ने अपने महापुराण पर्व में भी लिखा हैऋषभ का पौत्र मरीचि भी उनके साथ प्रव्रजित हुआ था। बाद में भ्रष्ट होकर उसने सांख्यमत का प्रतिपादन किया। 54
कपिल
सांख्य दर्शन के संस्थापक कपिल ऋषि थे, यह सांख्य कारिका की अन्तिम कारिका से स्पष्ट होता है। श्वेताम्बर उपनिषद् में कपिल को ब्राह्मण का बौद्धिक पुत्र, महाभारत के शांतिपर्व में ब्राह्मण का मानस पुत्र और भागवत् में विष्णु का अवतार माना है।
उलूक
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वैशेषिक दर्शन के पुरस्कर्ता कणादऋषि का एक नाम उलुक भी था। संभवतः
अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्याः क्रिया