________________
मूल दोष दो हैं-राग और द्वेष। हिंसा, परिग्रह इत्यादि दोष उनके पर्याय हैं। रागद्वेष से प्रेरित होकर जो परिग्रह का स्पर्श करता है, वह हिंसा आदि का भी स्पर्श करता है। हिंसा की चिकित्सा अहिंसक चित्त निर्माण से ही संभव है। संयम और अप्रमाद की पृष्ठभूमि से उभरा आत्मतुला का भाव सबको कल्याण की दिशा में गति दे सकता है। साध्वी नगीनाश्रीजी की सहवर्तिनी साध्वी गवेषणाश्रीजी ने क्रिया के विविध आयामों का अनावरण इस शोध कार्य के माध्यम से किया है। अहिंसा व मैत्री के प्रति निष्ठा जागृत करने में यह निमित्त बने- मंगल कामना।
गौतम ज्ञानशाला 27 नवम्बर, 2008
डॉ. समणी सत्यप्रज्ञा सहायक प्रोफेसर, अहिंसा एवं शान्ति विभाग जैन विश्वभारती विश्वविद्यालय, लाडनूं (राजस्थान)
XLV