________________ (10) पारांचिक योग्य-जिन अनाचारों की शुद्धि गृहस्थ का वेष धारण कराने पर और बहुत लम्बे समय तक निर्धारित तप का अनुष्ठान कराने पर ही हो सकती है ऐसे अनाचार पारांचिकप्रायश्चित्त योग्य होते हैं। इस प्रायश्चित्त वाला व्यक्ति उपाश्रय, ग्राम और देश से बहिष्कृत किया जाता है। प्रायश्चित्त के प्रमुख कारण 1. अतिक्रम-दोषसेवन का संकल्प / 2. व्यतिक्रम-दोषसेवन के साधनों का संग्रह करना / 3. अतिचार-दोषसेवन प्रारम्भ करना। 4. अनाचार-~-दोषसेवन कर लेना। अतिक्रम के तीन भेद१. ज्ञान का अतिक्रम, 2. दर्शन का अतिक्रम, 3. चारित्र का अतिक्रम। इसी प्रकार ज्ञान का व्यतिक्रम, अतिचार और अनाचार हैं / दर्शन और चारित्र के भी तीन-तीन भेद हैं। ज्ञान का अतिक्रम तीन प्रकार का है ---- 1. जघन्य, 2. मध्यम, 3. उत्कृष्ट / इसी प्रकार ज्ञान का व्यतिक्रम, अतिचार और अनाचार हैं। दर्शन और चारित्र के भी तीन-तीन भेद हैं। ज्ञानादि का अतिक्रम हो गया हो तो गुरु के समक्ष आलोचना करना, प्रतिक्रमण करना तथा निन्दा, गहरे आदि करके शुद्धि करना, पुनः दोषसेवन न करने का दृढ़ संकल्प करना तथा प्रायश्चित्त रूप तप करना / इसी प्रकार के ज्ञान के व्यतिक्रमादि तथा दर्शन-चारित्र के अतिक्रमादि की शुद्धि करनी चाहिए।' 1. ठाणं० 6, सू० 489 / ठाणं० 8, सू० 605 / ठाणं० 9, सू० 688 / ठाणं० 10, सू० 733 / पारांचिक प्रायश्चित्त योग्य पाँच हैं१. जो कुल (गच्छ) में रहकर परस्पर कलह कराता हो। 2. जो गण में रहकर परस्पर कलह कराता हो। 3. जो हिंसाप्रेक्षी हो, 4. जो छिद्रप्रेमी हो, 5. प्रश्नशास्त्र का बारम्बार प्रयोग करता हो। -ठागं 5, उ०१ सू० 398 / पारांचिक प्रायश्चित्त योग्य तीन हैं१. दुष्ट पारांचिक 2. प्रमत्त पारांचिक 3. अन्योऽन्य मैथनसेवी पारांचिक / अनवस्थाप्य और पारांचिक प्रायश्चित्त के सम्बन्ध में विशेष जानने के लिये व्यवहारभाश्य देखना चाहिये। 2. (क) ठाणं 3 उ०४ सू० 195 / (ख) अस्वाध्यायकाल में स्वाध्याय करने का संकल्प करना ज्ञान का अतिक्रम है / पुस्तक लेने जाना- ज्ञान का व्यतिक्रम है / स्वाध्याय प्रारम्भ करना ज्ञान का अतिचार है। पूर्ण स्वाध्याय करना ज्ञान का अनाचार है। इसी प्रकार दर्शन तथा चारित्र के अतिक्रमादि समझने चाहिए। [29] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org