________________ प्रथम उद्देशक] [285 बहुश्रुत बहु-आगमज्ञ श्रावक, 6. सम्यक् भावित ज्ञानी अर्थात् सम्यग्दृष्टि या समझदार व्यक्ति, 7. ग्राम आदि के बाहर जाकर अरिहंत सिद्धों की साक्षी से आलोचना करे / __ यहां तीन पदों में बहुश्रुत बहु-आगमज्ञ नहीं है-- (1) प्राचार्य उपाध्याय तो नियमत: बहुश्रुत बहु-पागमज्ञ ही होते हैं अतः इनके लिए इस विशेषण की आवश्यकता ही नहीं होती है। बृहत्कल्प भाष्य गा. 691-692 में कहा है कि प्राचार्यादि पदवीधर तो नियमतः गीतार्थ होते हैं / सामान्य भिक्षु गीतार्थ अगीतार्थ दोनों प्रकार के होते हैं / (2) सम्यग्दृष्टि या समझदार व्यक्ति का बहुश्रुत होना आवश्यक नहीं है। वह तो केवल आलोचना सुनने के योग्य होता है और गीतार्थ अालोचक भिक्षु स्वयं ही प्रायश्चित्त स्वीकार करता है। (3) अरिहंत-सिद्ध भगवान् तो सर्वज्ञ सर्वदर्शी हैं। उनके लिए इस विशेषण की आवश्यकता नहीं है। सूत्र में “सम्म भावियाई चेइयाई" शब्द का प्रयोग किया गया है, जिसका अर्थ टीकाकार ने इस प्रकार किया है "तस्याप्यभावे यत्रव सम्यग्भावितानि-जिनवचनवासितांतः करणानि देवतानि पश्यति तत्र गत्वा तेषामंतिके पालोचयेत् / श्रमणोपासक के अभाव में जिनवचनों से जिनका हृदय सुवासित है, ऐसे देवता को देखे तो उसके पास जाकर अपनी पालोचना करे / यहां टीकाकार ने “चेइयाई" शब्द का "देवता" अर्थ किया है तथा उसे जिनवचनों से भावित अन्तःकरण वाला कहा है / "चेइय" शब्द के अनेक अर्थ शब्दकोश में बताये गये हैं। उसमें ज्ञानवान्, भिक्षु आदि अर्थ भी "चेइय" शब्द के लिये हैं / अनेक सूत्रों में तीर्थकर भगवान महावीर स्वामी के लिए "चेइय" शब्द का प्रयोग किया गया है, वहां उस शब्द से भगवान् को "ज्ञानवान्" कहा है। उपासकदशा अ. 1 में श्रमणोपासक की समकित सम्बन्धी प्रतिज्ञा है। उसमें अन्यतीथिक से ग्रहण किये चेत्य अर्थात् साधु को वन्दन-नमस्कार एवं पालाप-संलाप करने का तथा आहार-पानी देने का निषेध है / वहां स्पष्ट रूप से "चेइय" शब्द का भिक्षु अर्थ में प्रयोग किया गया है। __ प्रस्तुत सूत्र में प्रयुक्त 'चेइय' शब्द का अर्थ मूर्तिपूजक समुदाय वाले "अरिहंत भगवान की मूर्ति" भी करते हैं, किन्तु वह टीकाकार के अर्थ से विपरीत है तथा पूर्वापर सूत्रों से विरुद्ध भी है। क्योंकि टीकाकार ने यहां अन्तःकरण शब्द का प्रयोग किया है, वह मूर्ति में नहीं हो सकता है / सूत्र में सम्यक् भावित चैत्य का अभाव होने पर अरिहंत सिद्ध की साक्षी के लिए गांव आदि के बाहर जाने का कहा है। यदि अरिहंत चैत्य का अर्थ मन्दिर होता तो मन्दिर में ही अरिहंत सिद्ध की साक्षी से आलोचना करने का कथन होता, गांव के बाहर जाने के अलग विकल्प देने की आवश्यकता ही नहीं होती। अतः 'चेइय' शब्द का प्रस्तुत प्रकरण में 'ज्ञानी या समझदार पुरुष' ऐसा अर्थ करना ही उपयुक्त है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org