Book Title: Agam 26 Chhed 03 Vyavahara Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 255
________________ बसवां उद्देशक] [435 सत्तमीए से कप्पइ नव दत्तीयो भोयणस्स पडिगाहेत्तए, नव पाणस्स / अट्ठमीए से कप्पइ अट्ठ दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, अट्ठ पाणस्स / नवमीए से कप्पइ सत्त दत्तीमो भोयणस्स पडिगाहेत्तए, सत्त पाणस्स / दसमीए से कप्पइ छ वत्तीयो भोयणस्स पडिगाहेत्तए, छ पाणस्स / एगारसमीए से कप्पइ पंच दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, पंच पाणस्स / बारसमीए से कप्पइ चउ दत्तीम्रो भोयणस्स पडिगाहेत्तए, चउ पाणस्स / तेरसमीए से कप्पइ तिन्नि दत्तोपो भोयणस्स पडिगाहेतए, तिन्नि पाणस्स / चउदसमीए से कप्पइ दो दत्तोओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, दो पाणस्स / अमावासाए से कप्पइ एगा दत्तो भोयणस्स पडिगाहेत्तए, एगा पाणंस्स / सुक्कपक्खस्स पाडियए से कप्पाइ दो बत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, दो पाणस्स / बिइयाए से कप्पइ तिन्नि वत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, तिन्नि पाणस्स / तइयाए से कप्पइ चउ दत्तीपो भोयणस्स पडिगाहेत्तए, चउ पाणस्स। चउत्थीए से कप्पइ पंच दत्तोपो भोयणस्स पडिगाहेत्तए, पंच पासस्स / पंचमीए से कप्पइ छ दत्तीसो भोयणस्स पडिगाहेत्तए, छ पाणस्स / छट्ठीए से कप्पा सत्त दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, सत्त पाणस्स / सत्तमीए से कप्पइ अट्ठ दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, अट्ठ पाणस्स। अट्टमीए से कप्पइ नव दत्तीग्रो भोयणस्स पडिगाहेत्तए, नव पाणस्स। नवमीए से कप्पइ वस दत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, वस पाणस्स / वसमीए से कप्पइ एगारस दत्तोओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, एगारस पाणस्स। एगारसमोए से कप्पइ बारस दत्तोओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, बारस पाणस्स / बारसमीए से कप्पइ तेरस वत्तीओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, तेरस पाणस्स। तेरसमीए से कप्पइ चउद्दस दत्तीमो भोयणस्स पडिगाहेत्तए, चउद्दस पाणस्स / चउद्दसमीए से कप्पद पन्नरस दत्तोओ भोयणस्स पडिगाहेत्तए, पन्नारस पाणस्स / पुण्णिमाए से य प्रभत्तठे भवइ। एवं खलु एसा बहरमज्झा चंदपडिमा अहासुत्तं जाव आणाए अणुपालिया भवइ / 1. दो प्रतिमायें कहो गई हैं, यथा-१. यवमध्यचन्द्रप्रतिमा, 2. वज्रमध्यचन्द्रप्रतिमा। यवमध्यचन्द्रप्रतिमा स्वीकार करने वाला अनगार एक मास तक शरीर के परिकर्म से तथा शरीर के ममत्व से रहित होकर रहे / उस समय जो कोई भी देव, मनुष्य एवं तिर्यंचकृत अनुकूल या प्रतिकूल परीषह एवं उपसर्ग उत्पन्न हों, यथा अनुकूल परीषह एवं उपसर्ग ये हैं--कोई वन्दना नमस्कार करे, सत्कार-सम्मान करे, कल्याणरुप, मंगलरूप, देवरूप और ज्ञानरूप मानकर पर्युपासना करे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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