Book Title: Agam 26 Chhed 03 Vyavahara Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 270
________________ 450] [व्यवहारसूत्र बालक-बालिका को बड़ी दीक्षा देने का विधि-निषेध 18. नो कप्पइ णिग्गंधाण वा णिग्गंथीण वा खुडगं वा खुड्डियं वा ऊणवासजायं उवट्ठावेत्तए वा संभु जित्तए वा। 19. कप्पइ णिग्गंथाण या णिग्गंथीण वा खुड्डगं वा खुड्डियं वा साइरेग अट्ठवासजायं उवट्ठावेत्तए वा संभुजित्तए था। 18. निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों को अाठ वर्ष से कम उम्र वाले बालक-बालिका को बड़ी दीक्षा देना और उनके साथ आहार करना नहीं कल्पता है। 19. निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों को आठ वर्ष से अधिक उम्र वाले बालक-बालिका को बड़ी दीक्षा देना और उनके साथ आहार करना कल्पता है। विवेचन-पूर्व सूत्र में शैक्ष-भूमि के कथन से उपस्थापना काल कहा गया है और यहां पर क्षुल्लक-क्षुल्लिका अर्थात् छोटी उम्र के बालक-बालिका की उपस्थापना का कथन किया गया है / यदि माता-पिता आदि के साथ किसी कारण से छोटी उम्र के बालक को दीक्षा दे दी जाय तो कुछ भी अधिक आठ वर्ष अर्थात् गर्भकाल सहित नौ वर्ष के पूर्व बड़ी दीक्षा नहीं देनी चाहिए। इतना समय पूर्ण हो जाने पर बड़ी दीक्षा दी जा सकती है। सामान्यतया तो इस वय के पूर्व दीक्षा भी नहीं देनी चाहिए। अत: यह सूत्रोक्त उपस्थापना का विधान प्रापवादिक परिस्थिति की अपेक्षा से है, ऐसा समझना चाहिए / अथवा उपस्थापना से दीक्षा या बड़ी दीक्षा दोनों ही सूचित है, ऐसा भी समझा जा सकता है। अत्यधिक छोटी उम्र के बालक का अस्थिरचित्त एवं चंचल होना स्वाभाविक है एवं उसका जिद्द करना, रोना, खेलना, अविवेक से टट्टी पेशाब कर देना आदि स्थितियों से संयम की हानि होना संभव रहता है / इसी कारण से नौ वर्ष की उम्र के पूर्व दीक्षा या बड़ी दीक्षा देने का निषेध एवं प्रायश्चित्त विधान है। सूत्र में "संभुजित्तए" क्रिया पद भी है, उसका तात्पर्य यह है कि उपस्थापना के पूर्व नवदीक्षित साधु को एक मांडलिक आहार नहीं कराया जा सकता है। क्योंकि तब तक वह सामायिकचारित्र वाला होता है / बड़ी दीक्षा के बाद वह छेदोपस्थापनीय चारित्र वाला हो जाता है। उसी के साथ एक मांडलिक पाहार करने का विधान है, ऐसा समझना चाहिए। बालक को आचारप्रकल्प के अध्ययन कराने का निषेध 20. नो कप्पड निरगंथाण वा निग्गंथीण वा खुड्डगस्स वा खुड्डियाए वा अवंजणजायस्स प्रायारपकप्पे णामं अज्झयणे उद्दिसित्तए। 21. कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा खुड्डगस्स वा खुड्डियाए वा वंजणजायस्स आयारपकप्पे णामं अज्झायणे उद्दिसित्तए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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