________________ 452] [व्यवहारसूत्र 33. सत्तरसवास-परियायस्स समणस्स णिग्गंथस्स कप्पइ आसीविसभावणाणामं अज्झयणे उद्दिसित्तए। 34. अट्ठारसवास-परियायस्स समणस्स जिग्गंथस्स कप्पइ दिद्धिविसभावणाणामं अज्मयणे उद्दिसित्तए। 35. एगूणवीसवास-परियायस्स समणस्स णिग्गंथस्स कप्पइ दिट्टिवाय नाम अंगे उद्दिसित्तए / 36. वीसवास-परियाए समणे णिग्गंथे सव्वसुयाणुवाई भवइ / 22. तीन वर्ष की दीक्षापर्याय वाले (योग्य) श्रमण-निर्ग्रन्थ को प्राचारप्रकल्प नामक अध्ययन पढ़ाना कल्पता है। 23. चार वर्ष की दीक्षापर्याय वाले श्रमण-निर्ग्रन्थ को सूत्रकृतांग नामक दूसरा अंग पढ़ाना कल्पता है। 24. पांच वर्ष की दीक्षापर्याय वाले श्रमण-निर्ग्रन्थ को दशा, कल्प, व्यवहार सूत्र पढ़ाना कल्पता है। 25. आठ वर्ष की दीक्षापर्याय वाले श्रमण-निर्ग्रन्थ को स्थानांग और समवायांगसूत्र पढ़ाना कल्पता है। 26. दश वर्ष की दीक्षापर्याय वाले श्रमण-निर्ग्रन्थ को व्याख्याप्रज्ञप्ति नामक अंग पढ़ाना कल्पता है। 27. ग्यारह वर्ष की दीक्षापर्याय वाले श्रमण-निर्ग्रन्थ को क्षुल्लिका विमानप्रविभक्ति, महल्लिका विमानप्रविभक्ति, अंगचूलिका, वर्गचूलिका और व्याख्याचूलिका नामक अध्ययन पढ़ाना कल्पता है। 28. बारह वर्ष की दीक्षापर्याय वाले श्रमण-निर्ग्रन्थ को अरुणोपपात, वरुणोपपात, गरुडोपपात, धरणोपपात, वैश्रमणोपपात, वेलन्धरोपपात नामक अध्ययन पढ़ाना कल्पता है। 29. तेरह वर्ष की दीक्षापर्याय वाले श्रमण-निर्ग्रन्थ को उत्थानश्रुत, समुत्थानश्रुत, देवेन्द्रपरियापनिका और नागपरियापनिका नामक अध्ययन पढ़ाना कल्पता है / 30. चौदह वर्ष की दीक्षापर्याय वाले श्रमण-निर्ग्रन्थ को स्वप्नभावना नामक अध्ययन पढ़ाना कल्पता है। 31. पन्द्रह वर्ष की दीक्षापर्याय वाले श्रमण-निर्ग्रन्थ को चारणभावना नामक अध्ययन पढ़ाना कल्पता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org