________________ 458 [व्यवहारसूत्र 11 12-15 18-19 दृढधर्मी और प्रियधर्मी सम्बन्धी एक चौभंगी है। दीक्षादाता, बड़ी दीक्षादाता, मूल-पागम के वाचनादाता, अर्थ-आगम के वाचनादाता की एवं इनसे सम्बन्धित शिष्यों की कुल चार चौभंगियां कही गई हैं एवं उनके अन्तिम भंग के साथ धर्माचार्य (प्रतिबोधदाता) आदि का कथन किया गया है। तीन प्रकार के स्थविर होते हैं। शैक्ष को उपस्थापना के पूर्व की तीन अवस्थाएं होती हैं / गर्भकाल सहित 9 वर्ष के पूर्व किसी को दीक्षा नहीं देना / कारणवश दीक्षा दी गई हो तो बड़ी दीक्षा नहीं देना चाहिए। अव्यक्त (16 वर्ष से कम वय वाले) को प्राचारांग-निशीथ की वाचना न देना, अन्य अध्ययन कराना। बीस वर्ष की दीक्षापर्याय तक योग्य शिष्यों को सूत्रोक्त आगमों की वाचना पूर्ण कराना। प्राचार्यादि दश की भावयुक्त वैयावृत्य करना / इनकी वैयावृत्य से महान् कर्मों की निर्जरा एवं मुक्ति की प्राप्ति होती है। 20-21 22-36 उपसंहार 1-2 4-15 इस उद्देशक मेंदो चन्द्रप्रतिमानों का, पांच व्यवहार का, अनेक चौभंगियों का, स्थविर के प्रकारों का, शैक्ष को अवस्थाओं का, बालदीक्षा के विधि-निषेध का, प्रागम-अध्ययनक्रम का, वैयावृत्य का, इत्यादि विषयों का कथन किया गया है / // दसवां उद्देशक समाप्त // 18-19 20-36 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org