________________ दसवां उद्देशक] [ 455 (15-20) अरुणोपपात, वरुणोपपात, गरुडोपपात, धरणोपपात, वैश्रमणोपपात, वेलन्धरोपपात, (21-24) उत्थानश्रुत, समुत्थानश्रुत, देवेन्द्रपरियापनिका, नागपरियापनिका, (25) स्वप्नभावना अध्ययन, (26) चारणभावना अध्ययन, (27) तेजनिसर्ग अध्ययन, (28) आशीविषभावना अध्ययन, (29) दृष्टिविषभावना अध्ययन, (30) दृष्टिवाद अंग। सूत्रांक 10 से 29 तक के आगम दृष्टिवाद नामक अंग के ही अध्ययन थे अथवा उससे अलग नियूंढ किये गये सूत्र थे। इन सभी का नाम नंदीसूत्र में कालिकश्रुत की सूची में दिया गया है। इन सूत्रों के अंत में यह बताया गया है कि बीस वर्ष की दीक्षापर्याय तक संपूर्णश्रुत का अध्ययन कर लेना चाहिए। तदनुसार वर्तमान में भी प्रत्येक योग्य भिक्षु को उपलब्ध सभी पागमश्रुत का अध्ययन बीस वर्ष में परिपूर्ण कर लेना चाहिए। उसके बाद प्रवचनप्रभावना करनी चाहिए अथवा निवृत्तिमय साधना में रहकर स्वाध्याय, ध्यान, कायोत्सर्ग प्रादि में लीन रहते हुए आत्मसाधना करनी चाहिए। उपर्युक्त आगमों की वाचना योग्य शिष्य को यथाक्रम से ही देनी चाहिए, इत्यादि विस्तृत वर्णन निशी. उ. 19 में देखें। वैयावृत्य के प्रकार एवं महानिर्जरा 37. दसविहे वेयावच्चे पण्णत्ते, तं जहा-१. आयरिय-वेयावच्चे, 2. उवमाय-यावच्चे, 3. थेर-वेयावच्चे, 4. तवस्सि-वेयावच्चे, 5. सेह-यावच्चे, 6. गिलाण-वेयावच्चे, 7. साहम्मियबेयावच्चे, 8. कुल-वेयावच्चे, 9. गण-चेयावच्चे, 10. संघ-वेयावच्चे। 1. आयरिय-वेयावच्चं करेमाणे समणे निग्गथे महानिज्जरे, महापज्जवसाणे भवइ / 2. उवज्झाय-वेयावच्चं करेमाणे समणे निग्गंथे महानिज्जरे, महापज्जवसाणे भवइ / 3. थेर-बेयावच्चं करेमाणे समणे निग्गंथे महानिज्जरे, महापज्जवसाणे भवइ / 4. तवस्सि-वेयावच्चं करेमाणे समणे निग्गंथे महानिज्जरे, महापज्जवसाणे भवइ / 5. सेह-यावच्चं करेमाणे समणे निग्गंथे महानिज्जरे, महापज्जवसाणे भवइ / 6. गिलाण-वेयावच्चं करेमाणे समणे निग्गथे महानिज्जरे, महापज्जवसाणे भवइ / 7. साहम्मिय-वेयावच्चं करेमाणे समणे निग्गथे महानिज्जरे, महापज्जवसाणे भवइ। . 8. कुल-यावच्चं करेमाणे समणे निग्गंथे महानिज्जरे, महापज्जवसाणे भवइ / 9. गण-वेयावच्चं करेमाणे समणे निग्गंथे महानिज्जरे, महापज्जवसाणे भवइ / 10. संघ-वेयावच्चं करेमाणे समणे निग्गथे महानिज्जरे, महापज्जवसाणे भवइ / 37. वैयावृत्य दस प्रकार का कहा गया है, जैसे-१. प्राचार्य-वैयावृत्य, 2. उपाध्यायवैयावृत्य, 3. स्थविर-वैयावृत्य, 4. तपस्वी-वैयावृत्य, 5. शैक्ष-वैयावृत्य, 6. ग्लान-वैयावृत्य, 7. सार्मिक-वैयावृत्य, 8. कुल-वैयावृत्य, 9. गण-वैयावृत्य, 10. संघ-वैयावृत्य / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org