________________ 454] [ व्यवहारसूत्र इतिहास के नाम से समय-समय पर ऐसी कई कल्पनाएं प्रचलित हुई हैं या की गई हैं। जैसे कि—नियुक्ति, भाष्य, चूणियां आदि वास्तव में तो नंदीसूत्र की रचना के बाद प्राचार्यों द्वारा रचित ग्रन्थ हैं। फिर भी इनके विषय में 14 पूर्वी या तीन पूर्वी आदि के द्वारा रचित होने के कल्पित इतिहास प्रसिद्ध किए गए हैं। महाविदेहक्षेत्र से स्थूलिभद्र की बहन के द्वारा दो अथवा चार चूलिका लाने का कथन परिशिष्टपर्व आदि भिन्न-भिन्न ग्रन्थों में है / वे ग्रन्थ स्थूलिभद्र के समय से 800-900 वर्ष बाद रचे गए हैं। उन ग्रन्थकारों के पूर्व हुए टीकाकार, चूर्णिकार आदि उन चूलिकाओं के लिए महाविदेह से लाने संबंधी कोई कल्पना न करके उन्हें मौलिक रचना होना ही स्वीकार करते हैं। पर्युषणाकल्पसूत्र का १२वीं-तेरहवीं शताब्दी सक नाम भी नहीं था। उसे भी 14 पूर्वी भद्रबाहुस्वामी द्वारा रचित होना प्रचारित कर दिया, देखें दशा. द. 8 का विवेचन / ___ अत: उत्तराध्ययन, दशवकालिक इन दोनों सूत्रों की रचना व्यवहारसूत्र की रचना के बाद मानने में कोई आपत्ति नहीं है। किन्तु उसके पहले के प्राचार्यों द्वारा रचित मानने पर इस व्यवहारसूत्र के अध्ययनक्रम में इनका निर्देश न होना विचारणीय रहता है एवं इस विषयक प्रचलित इतिहासपरंपराएं भी विचार करने पर तर्कसंगत नहीं होती हैं। इन सूत्रों में जो तीन वर्ष पर्याय आदि का कथन किया गया है, उसका दो तरह से अर्थ किया जा सकता है (1) दीक्षापर्याय के तीन वर्ष पूर्ण होने पर उन आगमों का अध्ययन करना। (2) तीन वर्षों के दीक्षापर्याय में योग्य भिक्षु को कम से कम आगमों का अध्ययन कर लेना या करा देना चाहिए। इन दोनों अर्थों में दूसरा अर्थ आगमानुसारी है, इसका स्पष्टीकरण उ. 3 सू. 3 के विवेचन में किया गया है / पाठक वहां से समझ लें। दस वर्ष की दीक्षापर्याय के बाद में अध्ययन करने के लिए कहे गए सूत्रों में से प्रायः सभी सूत्र नंदीसूत्र की रचना के समय में कालिक श्रुतरूप में उपलब्ध थे। किन्तु वर्तमान में उनमें से कोई भी सूत्र उपलब्ध नहीं है / केवल 'तेयनिसर्ग' नामक अध्ययन भगवतीसूत्र के पंद्रहवें शतक में उपलब्ध है। ज्ञातासूत्र आदि अंगसूत्रों का प्रस्तुत अध्ययन में निर्देश नहीं किया गया है, इसका कारण यह है कि इन सूत्रों में प्रायः धर्मकथा का वर्णन है, जिनके क्रम की कोई आवश्यकता नहीं रहती है। यथावसर कभी भी इनका अध्ययन किया या कराया जा सकता है। प्रश्नव्याकरणसूत्र में उपलब्ध आश्रव-संवर का वर्णन गणधररचित नहीं है, किन्तु सूत्र की रचना के बाद में संकलित किया गया है / इन सूत्रों में सूचित किये गये आगमों के नाम इस प्रकार हैं (1-2) प्राचारांगसूत्र एवं निशीथसूत्र, (3) सूयगडांगसूत्र, (4, 5, 6) दशाश्रुतस्कधसूत्र, बृहत्कल्पसूत्र और व्यवहारसूत्र, (7, 8) ठाणांगसूत्र, समवायांगसूत्र, (9) भगवतीसूत्र। (10-14) क्षुल्लिका विमानप्रविभक्ति, महल्लिका विमानप्रविभक्ति, अंगचूलिका, वर्गचूलिका, व्याख्याचूलिका / Jain Education International Jain Education international For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org