________________ {সাগ __इसके अतिरिक्त जिन घरों में अधिक भक्ति एवं अनुराग हो तो उपलक्षण से वहां भी यह विवेक रखना आवश्यक समझ लेना चाहिए। क्योंकि वहां भी ऐसे दोषों के लगने की सम्भावना तो रहती ही है। इस सूत्रांश में यह बताया गया है कि पारिवारिक लोगों के घर में गोचरी के लिए प्रवेश करने के बाद कोई भी खाद्य पदार्थ निष्पादित हो या चुल्हे पर से चावल दाल या रोटी दूध आदि कोई भी पदार्थ हटाया जाए तो उसे नहीं लेना चाहिए। उस पदार्थ के हटाने में साधु का निमित्त हो या न हो, ज्ञात कुल में ऐसे पदार्थ अग्राह्य है। वहां घर में प्रवेश करने के पहले ही जो पदार्थ निष्पन्न हो या चूल्हे पर से उतरा हुआ हो, वहीं लेना चाहिए। अपरिचित या अल्पपरिचित घरों में उक्त पदार्थ लेने का सूत्र में निषेध नहीं है। _ इसका कारण यह है कि अनुरागी ज्ञातिजन आदि भक्तिवश कभी साधु के निमित्त भी वह प्रवृत्ति कर सकते हैं जिससे अग्निकाय की विराधना होना सम्भव है, किन्तु अल्पपरिचित या अल्पानुरागी घरों में उक्त दोष को सम्भावना नहीं रहती है। अत: उन कुलों में उक्त नियम की उपयोगिता नहीं है। इसीलिए यह विधान आगमों में केवल ज्ञातिजनों के कुल के साथ ही जोड़ा गया है। आचार्य आदि के अतिशय 2. आयरिय-उवज्झायस्स गणंसि पंच अइसेसा पण्णत्ता, तं जहा 1. आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स पाए निगिज्झिय-निगिज्झिय पप्फोडेमाणे वा पमज्जेमाणे वा नाइक्कमइ / 2. आयरिय-उवज्शाए अंतो उवस्सयस्स उच्चार-पासवणं विगिचमाणे वा विसोहेमाणे वा नाइक्कमइ / 3. आयरिय-उवज्झाए पभू वेयावाडियं, इच्छा करेज्जा, इच्छा नो करेज्जा। 4. आयरिय-उवज्झाए अंतो उवस्सयस्स एगरायं वा दुरायं वा एगो वसमाणे नाइक्कमइ / 5. आयरिय-उवज्झाए बाहि उवस्सयस्स एगरायं वा दुरायं वा एगनो वसमाणे नाइक्कमइ। 3. गणावच्छेइयस्स णं गर्णसि दो अइसेसा पण्णत्ता, तं जहा-- 1. गणावच्छेइए अंतो उवस्सयस्स एगरायं वा दुरायं वा एगओ वसमाणे नाइक्कमइ / 2. गणावच्छेइए बाहिं उवस्सयस्स एगरायं वा दुरायं वा एगो वसमाणे नाइक्कमइ। गण में प्राचार्य और उपाध्याय के पांच अतिशय कहे गये हैं, यथा 1. आचार्य और उपाध्याय उपाश्रय के अन्दर धूल से भरे अपने पैरों से आकर के कपड़े से पोछे या प्रमार्जन करें तो मर्यादा (जिनाज्ञा) का उल्लंघन नहीं होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org