________________ 400] [व्यवहारसूत्र स्पष्टीकरण कर देता है कि "अमुक समय तक भिक्षु रहेंगे, उसके बाद वह स्थान भी तुम्हारा हो जायेगा।" ऐसी स्थिति में पूर्व शय्यादाता ही शय्यातर रहता है। शय्यातर के निर्णय का आशय यह है कि जो शय्यातर होगा उसी के घर का आहार आदि ‘शय्यातरपिंड' कहलाएगा। ____ कभी पूर्व शय्यादाता भी कहे कि "मेरी प्राज्ञा है" और नूतन स्वामी भी कहे कि "मेरी भी अाज्ञा है" तब दोनों को शय्यातर मानना चाहिए। यदि समझाने पर उनके समझ में आ जाय तो किसी एक की ही आज्ञा रखना उचित है। क्योंकि बृहत्कल्प उ. 2 सू. 13 में अनेक स्वामियों वाले मकान में किसी एक स्वामी की आज्ञा लेने का विधान किया गया है। शय्यातर सम्बन्धी एवं शय्यातरपिंड सम्बन्धी विशेष जानकारी निशीथ उ. 2 सू. 46 के विवेचन में देखें। सूत्र में गृहस्थ के घर के लिये उपाश्रय शब्द का प्रयोग किया गया है। इसका कारण यह है कि जहां भिक्षु ठहरा हुआ हो या जहां उसे ठहरना हो, उन दोनों ही मकानों को आगमकार उपाश्रय शब्द से कहते हैं / इसीलिए बृहत्कल्प उद्दे. 2 सू. 1-10 में पानी के घड़े, सुरा या सौवीर के घड़े और धान्य एवं खाद्यसामग्री रखे गृहस्थ के घर को भी उपाश्रय कहा गया है। संपूर्ण रात-दिन जहां अग्नि अर्थात् भट्टियां जलती हों या दीपक जलते हों, ऐसे गृहस्थ के प्रारम्भजन्य कारखाने आदि स्थान को भी उपाश्रय कहा गया है। उसी पद्धति के कारण यहां भी गृहस्थ के घर में भिक्षु पहले से ठहरा हुआ होने से उसे उपाश्रय कहा है / वर्तमान में प्रचलित सामाजिक उपाश्रय में साधु ठहरा हुआ हो, उसे किसी के द्वारा बेचना या किराये पर देना सम्भव नहीं होता है। अतः यहां उपाश्रय शब्द से गृहस्थ का मकान अर्थ समझना चाहिए। आज्ञाग्रहण करने की विधि 23. विहवधूया नायकुलवासिणी सा वि यावि प्रोग्गहं अणुन्नवेयम्वा, किमंग पुण पिया वा, भाया वा, पुत्ते वा, से वि या वि ओग्गहे प्रोगेव्हियग्वे / 24. पहेवि प्रोग्गहं अणुन्नवेयव्वे / 23. पिता के घर पर जीवन यापन करने वाली विधवा लड़की की भी आज्ञा ली जा सकती है, तब पिता, भाई, पुत्र का तो कहना ही क्या अर्थात् उनको भी आज्ञा ग्रहण की जा सकती है। 24. यदि मार्ग में ठहरना हो तो उस स्थान की भी आज्ञा ग्रहण करनी चाहिए। विवेचन-घर के किन-किन सदस्यों की प्राज्ञा ली जा सकती है, यह प्रथम सूत्र का प्रतिपाद्य विषय है और किसी भी स्थान पर आज्ञा लेकर ही बैठना चाहिए यह दूसरे सूत्र का प्रतिपाद्य विषय है। प्रथम सूत्र में बताया गया है कि पिता, पुत्र, भाई की भी आज्ञा ली जा सकती है अर्थात् संयुक्त परिवार का कोई भी समझदार सदस्य हो, चाहे वह स्त्री हो या पुरुष, उनकी आज्ञा ली जा सकती है। विवाहित लड़की को श्राज्ञा नहीं ली जा सकती। किन्तु जो लड़की किसी भी कारण से सदा पिता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org