________________ सातवां उद्देशक] .[401 के घर में ही रहती हो तो उसकी भी आज्ञा ली जा सकती है। इसी प्रकार जो समझदार एवं जिम्मेदार नौकर हो, उसकी भी आज्ञा ली जा सकती है। ___ मकान के बाहर का खुला स्थान (बरामदा) आदि में बैठना हो और मकान-मालिक घर बन्द करके कहीं गया हुआ हो तो किसी राहगीर या पड़ौसी की भी आज्ञा ली जा सकती है। द्वितीय सूत्रानुसार भिक्षु को विहार करते हुए कभी मार्ग में या वृक्ष के नीचे ठहरना हो तो उस स्थान की भी आज्ञा लेनी चाहिए। बिना आज्ञा लिए भिक्षु वहां भी नहीं बैठ सकता है। उस समय यदि कोई भी पथिक उधर से जा रहा हो या कोई व्यक्ति वहां बैठा हो तो उसकी प्राज्ञा ली जा सकती है। यदि कोई भी आज्ञा देने वाला न हो तो उस स्थान में ठहरने के लिए "शकेंद्र की आज्ञा है" ऐसा उच्चारण करके भिक्ष ठहर सकता है। किन्तु किसी भी प्रकार से प्राज्ञा लिए बिना कहीं पर भी नहीं ठहरना चाहिए, यह दूसरे सूत्र का आशय है। यदि प्राज्ञा लेना भूल जाए तो उसकी आलोचना प्रतिक्रमण कर लेना चाहिए। प्रतियों में "पहे वि" और "पहिए वि" ऐसे दो तरह के शब्द मिलते हैं। किन्तु भाष्य के अनुसार यहां “पहे वि" ऐसा पाठ शुद्ध है, जिसका अर्थ है कि पथ में अर्थात् मार्ग में बैठना हो तो उसकी भी आज्ञा लेनी चाहिए / “पहिए वि" प्रयोग को लिपिदोष ही समझना चाहिए। राज्यपरिवर्तन में आज्ञा ग्रहण करने का विधान 25. से रज्जपरियट्टेसु, संथडेसु, अन्वोगडेसु, अन्वोच्छिन्नेसु, अपरपरिग्गहिएसु, सच्चेव ओग्गहस्स पुष्वाणुन्नवणा चिट्ठइ अहालंदमवि प्रोग्गहे / 26. से रज्जपरियटेसु, असंथडेसु, बोगडेसु, वोच्छिन्नेसु, परपरिग्गहिएसु भिक्खुभावस्स अट्ठाए दोच्चपि ओग्गहे अणुनवेयव्वे सिया। 25. राजा की मृत्यु के बाद नये राजा का अभिषेक हो किन्तु अविभक्त एवं शत्रुओं द्वारा अनाक्रान्त रहे, राजवंश अविछिन्न रहे और राज्यव्यवस्था पूर्ववत् रहे तो साधु-साध्वियों के लिए पूर्वगृहीत आज्ञा ही अवस्थित रहती है। 26. राजा की मृत्यु के बाद नये राजा का अभिषेक हो और उस समय राज्य विभक्त हो जाय या शत्रुओं द्वारा आक्रान्त हो जाय, राजवंश विच्छिन्न हो जाय या राज्यव्यवस्था परिवर्तित हो जाय तो साधु-साध्वियों को भिक्षु-भाव अर्थात् (संयम की मर्यादा) की रक्षा के लिए दूसरी बार आज्ञा ले लेनी चाहिए। विवेचन-जिस राज्य में भिक्षुओं को विचरण करना हो उसके स्वामी अर्थात् राजा आदि की आज्ञा ले लेनी चाहिए। आज्ञा लेने के बाद यदि राजा का परिवर्तन हो जाय तब दो प्रकार की स्थिति होती है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org