________________ 418] [व्यवहारसूत्र 12. सागारियस्स णायए सिया सागारियस्स एगवगडाए बाहिं सागारियस्स अभिनिपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए नो से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए। 13. सागारियस्स गायए सिया सागारियस्स अभिनिव्वगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमणपवेसाए अंतो सागारियस्स एगपयाए सागारियं चोवजीवइ तम्हा दावए नो से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए / 14. सागारियस्स गायए सिया सागारियस्स अभिनिव्वगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमणपवेसाए अंतो सागारियस्स अभिनिपयाए सागारियं चोवजीवइ तम्हा दावए नो से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए। 15. सागारियस्स णायए सिया सागारियस्स अभिनिव्वगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमणपवेसाए बाहिं सागारियस्स एगपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा वावर नो से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए। 16. सागारियस्स णायए सिया सागारियस्स अभिनिव्वगडाए एगदुवाराए एगनिक्खमण-पवेसाए बाहिं सागारियस्स अभिनिपयाए सागारियं चोवजीवइ, तम्हा दावए नो से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए। 1. शय्यातर के यहां किसी प्रागन्तुक के लिये पाहार बनाया गया हो, उसे प्रातिहारिक दिया गया हो, वह उसके घर के भीतरी भाग में जीमता हो, उस आहार में से वह आगन्तुक दे तो साधु को लेना नहीं कल्पता है। 2. शय्यातर के यहां किसी आगन्तुक के लिये आहार बनाया गया हो, उसे अप्रातिहरिक दिया गया हो, वह उसके घर के भीतरी भाग में जीमता हो, उस आहार में से वह आगन्तुक दे तो साधु को लेना कल्पता है। 3. शय्यातर के यहां किसी आगन्तुक के लिये आहार बनाया गया हो, उसे खाने के लिए प्रातिहारिक दिया गया हो, वह उसके घर के बाह्यभाग में जीमता हो, उस आहार में से वह आगन्तुक दे तो साधु को लेना नहीं कल्पता है / 4. शय्यातर के यहां किसी आगन्तुक के लिये घर के बाह्यभाग में प्राहार बनाया गया हो, उसे खाने के लिये अप्रातिहारिक दिया गया हो, वह उसके घर के बाह्यभाग में जीमता हो, उस आहार में से वह आगन्तुक दे तो साधु को लेना कल्पता है / 5. शय्यातर के दास, प्रेष्य, भृतक और नौकर के लिए आहार बना हो, उसे प्रातिहारिक दिया गया हो, वह उसके घर के भीतरी भाग में जीमता हो, उस ग्राहार में से वह साधु को दे तो लेना नहीं कल्पता है। 6. शय्यातर के दास, प्रेष्य, भृतक और नौकर के लिए आहार बना हो, उसे अप्रातिहारिक दिया गया हो, वह उसके घर के भीतरी भाग में जीमता हो, उस पाहार में से वह साधु को दे तो लेना कल्पता है। 7. शय्यातर के दास, प्रेष्य, भृतक और नौकर के लिए आहार बना हो, उसे प्रातिहारिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org