Book Title: Agam 26 Chhed 03 Vyavahara Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 240
________________ 420] [व्यवहारसूत्र निष्पन्न कर उससे जोवननिर्वाह करता है। यदि वह उस पाहार में से निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों को देता है तो उन्हें लेना नहीं कल्पता है / विवेचन-शय्यातर का अाहार पाहुणों (मेहमानों) के एवं नौकरों को नियत किये अनुसार परिपूर्ण दे दिया गया हो तो उसमें से भिक्षु ग्रहण कर सकता है / यदि पाहुणों को या नौकरों को थोड़ा-थोड़ा दिया जा रहा है एवं आवश्यकता होने पर वे पुनः ले सकते हैं और अवशेष रहने पर लौटा भी सकते हैं, ऐसा आहार साधु नहीं ले सकता है। शय्यातर के सहयोग से ही जो ज्ञातिजन जीवन व्यतीत करते हों अर्थात् उनका सम्पूर्ण खर्च शय्यातर ही देता हो तो भिक्षु उसके आहार को ग्रहण नहीं कर सकता / यही अर्थ (9 से 16) पाठ सूत्रों में कहा गया है / प्राशय यह है कि वे ज्ञातिजन शय्यातर के घर के अन्दर या बाहर किसी चूल्हे पर भोजन बनावें एवं उसका चौका अलग हो या शामिल हो, किसी भी विकल्प में उसका आहारादि नहीं कल्पता है। - इससे यह तात्पर्य समझना चाहिए कि शय्यातर के ज्ञातिजन या अन्य को मर्यादित खर्च दिया जाता हो और घट-बध का जिम्मेवार वह शय्यातर नहीं हो तो उनका आहारादि ग्रहण किया जा सकता है। शय्यातरपिंड संबंधी अन्य जानकारी निशीथ उ. 2, बृहत्कल्प उ. 2, दशा. द. 2 एवं व्यव. उ. 6 में देखें। शय्यातर के भागीदारी वाली विक्रयशालाओं से आहार लेने का विधि-निषेध 17. सागारियस्स चक्कियासाला साहारणवक्कय-पउत्ता, तम्हा दावए नो से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए। 18. सागारियस्स चक्कियासाला निस्साहारण-वक्कय-पउत्ता, तम्हा दावए एवं से नो कप्पड़ पडिग्गाहेत्तए। 19. सागारियस्स गोलियसाला साहारणवक्कय-पउत्ता, तम्हा दावए, नो से कप्पड़ पडिग्गाहेत्तए। 20. सागारियस्स गोलियसाला निस्साहारणवक्कय-पउत्ता, तम्हा दावए, एवं से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए। 21. सागारियस्स बोधियसाला साहारणवक्कय-पउत्ता, तम्हा दावए, नो से कप्पइ पडिग्गाहेत्तए। 22. सागारियस्स बोधियसाला निस्साहारणवक्कय-पउत्ता, तम्हा दावए एवं से कप्पा पडिग्गाहेत्तए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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