________________ 408] [व्यवहारसूत्र 6. निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों को बाहर से लाया हुआ प्रातिहारिक शय्या-संस्तारक या शय्यातर का शय्या-संस्तारक दूसरी बार प्राज्ञा लिए बिना अन्यत्र ले जाना नहीं कल्पता है / 7. निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों को बाहर से लाया हुआ प्रातिहारिक शय्या-संस्तारक या शय्यात्तर का शय्या-संस्तारक दूसरी बार आज्ञा लेकर ही अन्यत्र ले जाना कल्पता है। 8. निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों को बाहर से लाया हा प्रातिहारिक शय्या-संस्तारक या शय्यातर का शय्या-संस्तारक सर्वथा सौंप देने के बाद दूसरी बार आज्ञा लिए बिना काम में लेना नहीं कल्पता है / 9. निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों को बाहर से लाया हा शय्या-संस्तारक या शय्यातर का शय्यासंस्तारक सर्वथा सौंप देने के बाद दूसरी बार आज्ञा लेकर ही काम में लेना कल्पता है / विवेचन-शय्यातर का या अन्य गहस्थ का शय्या-संस्तारक आदि कोई भी प्रातिहारिक उपकरण जिस मकान में रहते हुए ग्रहण किया गया है, उसको दूसरे मकान में ले जाना आवश्यक हो तो उसके स्वामी से प्राज्ञा प्राप्त करना या उसे सूचना करना आवश्यक है। अधिक जानकारी के लिए नि. उ. 2 सू. 53 का विवेचन देखें। किसी का पाट आदि कोई भी उपकरण लाया गया हो, उसे अल्पकाल के लिए आवश्यक न होने से उपाश्रय में ही अपनी निश्रा से छोड़ा जा सकता है किंतु उसे जब कभी पुनः लेना आवश्यक हो जाय तो दुबारा आज्ञा लेना जरूरी होता है, यह दूसरे सूत्राद्विक का श्राशय है / विशेष जानकारी के लिए नि. उ. 5 सू. 23 का विवेचन देखें। शय्या-संस्तारक ग्रहण करने की विधि 10. नो कप्पा निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पुवामेव ओग्गहं ओगिहित्ता तओ पच्छा अणुनवेत्तए। 11. कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा पुयामेव ओग्गहं अणुन्नवेत्ता तनो पच्छा प्रोगिहित्तए। 12. अह पुण एवं जाणेज्जा-इह खलु निम्गंथाण वा निग्गंथीण वा नो सुलभे पाडिहारिए सेज्जा संथारए त्ति कटु एवं णं कप्पइ पुन्वामेव ओग्गहं ओगिण्हित्ता तओ पच्छा अणुन्नवेत्तए। "मा वहउ अज्जो! बिइयं" त्ति वइ अणुलोमेणं अणुलोमेयव्वे सिया। 10. निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों को पहले शय्या-संस्तारक ग्रहण करना और बाद में उनकी आज्ञा लेना नहीं कल्पता है। 11. निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों को पहले प्राज्ञा लेना और बाद में शय्या-संस्तारक ग्रहण करना कल्पता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org