________________ 390] [व्यवहारसूत्र बार दोष लगाने पर, 2. पावस्थादि के साथ बारम्बार संसर्ग करने पर तथा 3. गुरु ग्रादि के प्रति विरोधभाव रखने पर उस साधु-साध्वी के साथ संबंधविच्छेद कर दिया जाता है। प्रवजित करने आदि के विधि-निषेध 5. नो कप्पड निग्गंथाणं निमगंथी अप्पणो अट्टाए पवावेत्तए वा, मुंडावेत्तए वा, सेहावेत्तए वा, उवट्ठावेत्तए वा, संवसित्तए वा, संभु जित्तए वा, तोसे इत्तरियं दिसं वा, अणुविसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। 6. कप्पइ निग्गंथाणं निग्गंथि अन्नेसि अट्टाए पवावेत्तए वा जाव संभुजित्तए वा, तीसे इत्तरियं दिसं वा, अणुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए बा। 7. नो कप्पइ निग्गंथीणं निग्गंथं अप्पणो अढाए पवावेत्तए वा जाव संभुजित्तए वा, तीसे इत्तरियं दिसंवा अणुविसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। 8. कप्पइ निग्गंथीणं निग्गथं अण्णेसि अट्टाए पब्यावेत्तए वा जाव संभ जित्तए वा, तोसे इत्तरियं दिसं वा अणुदिसं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। 5. निर्ग्रन्थी को अपनी शिष्या बनाने के लिए प्रजित करना, मुडित करना, शिक्षित करना, चारित्र में पुनः उपस्थापित करना, उसके साथ रहना और साथ बैठकर भोजन करने के लिए निर्देश करना निग्रन्थ को नहीं कल्पता है तथा अल्पकाल के लिए उसके दिशा या अनुदिशा का निर्देश करना एवं उसे धारण करना नहीं कल्पता है। 6. अन्य की शिष्या बनाने के लिए किसी निर्ग्रन्थी को प्रव्रजित करना यावत् साथ बैठकर भोजन करने के लिए निर्देश करना निर्ग्रन्थ को कल्पता है तथा अल्पकाल के लिए उसकी दिशा या अनुदिशा का निर्देश करना एवं उसे धारण करना कल्पता है। 7. निर्ग्रन्थ को अपना शिष्य बनाने के लिए प्रवजित करना यावत् साथ बैठकर भोजन करने के लिए निर्देश करना निर्ग्रन्थी को नहीं कल्पता है तथा अल्पकाल के लिए उसकी दिशा या अनुदिशा का निर्देश करना एवं उसे धारण करना नहीं कल्पता है। 8. निर्ग्रन्थ को अन्य का शिष्य बनाने के लिए प्रव्रजित करना, साथ बैठकर भोजन करने के लिए निर्देश करना निर्ग्रन्थी को कल्पता है तथा अल्पकाल के लिए उसकी दिशा या अनुदिशा का निर्देश करना एवं उसे धारण करने के लिए अनुज्ञा देना कल्पता है। विवेचन--सामान्यतया साधु की दीक्षा प्राचार्य, उपाध्याय के द्वारा एवं साध्वी की दीक्षा प्राचार्य, उपाध्याय या प्रवर्तिनी के द्वारा दी जाती है। तथापि कभी कोई गीतार्थ साधु किसी भी साधु या साध्वी को दीक्षित कर सकता है / उसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org