________________ चौथा उद्देशक सूत्र 11-12 13-14 15-17 [357 सिंघाड़ाप्रमुख भिक्षु के कालधर्म प्राप्त होने पर उचित कर्तव्य का, प्राचार्य के दिवंगत होने पर या संयम त्यागने पर योग्य को पद पर नियुक्त करने का, बड़ीदीक्षा देने सम्बन्धी समय के निर्धारण का, गणान्तर में गये भिक्षु के विवेक का, वजिकागमन एवं चरिका प्रवृत्त या निवृत्त भिक्षु के विवेक का, रत्नाधिक एवं अवमरात्निक के कर्तव्यों का, साथ में विचरण करने सम्बन्धी विनय-विवेक का, इत्यादि विषयों का कथन किया गया है / 19-23 24-25 26-32 // चौथा उद्देशक समाप्त // Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org