________________ तीसरा उद्देशक] [331 एवं आवश्यक होने पर कभी गीतार्थों की निश्रा से अन्य साधु-साध्वियों के भी जानने योग्य एवं परिस्थितिवश आचरण करने योग्य हो सकती है। प्रस्तुत सूत्र में पाए उद्दिसित्तए और धारित्तए, इन दो पदों का आशय यह है कि अब्रह्मसेवी भिक्षु को पद पर नियुक्त नहीं करना चाहिए और यदि जानकारी के अभाव में कोई उसको पद पर नियुक्त कर भी दे तो उसे स्वीकार नहीं करना चाहिए। सूत्र में मैथुन के संकल्पों से निवृत्त भिक्षु के लिए अनेक विशेषणों का प्रयोग किया गया है / टीकाकार ने उनके अर्थ में कुछ अन्तर बताते हुए व्याख्या की है। यथा स्थित--स्थित परिणाम वाले उपशांत-मैथुनप्रवृत्ति से निवृत्त उपरत--मैथुन के संकल्पों से निवृत्त प्रतिविरत-मैथुन सेवन से सर्वथा विरक्त निर्विकारी पूर्ण रूप से विकाररहित, शुद्ध ब्रह्मचर्य पालने वाला / - व्यव. भाष्य टीका / संयम त्यागकर जाने वाले को पद के विधि-निषेध 18. भिक्खू य गणानो अवक्कम्म ओहाएज्जा, तिण्णि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उदिसित्तए वा धारेत्तए था। तिहिं संवच्छरेहि वीइक्कतेहिं चउत्थगंसि संवच्छरंसि पट्ठियंसि ठियस्स, उवसंतस्स, उवरयस्स, पडिविरयस्स, निबिगारस्स एवं से कप्पइ प्रायरियतं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उदिसित्तए वा धारेत्तए वा। 19. गणावच्छेइए य गणावच्छेइयत्तं अनिक्खिवित्ता पोहाएज्जा, जावज्जीवाए तस्स तप्पत्तियं नो कप्पद पायरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। 20. गणावच्छेइए य गणावच्छेइयत्तं निक्खिवित्ता मोहाएज्जा, तिणि संघच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ आयरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। तिहि संवच्छरेहि वोइक्कतेहि, चउत्यगंसि संवच्छरंसि पट्ठियंसि ठियस्स, उवसंतस्स, उवरयस्स, पडिविरयस्स, निविगारस्स एवं से कप्पइ आयरियतं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। 21. पायरिय-उवज्झाए य आयरिय-उवज्झायत्तं निक्खिवित्त पोहाएज्जा, तिणि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ प्रायरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए था। 22. आयरिय-उवज्झाए य प्राथरिय-उवज्झायत्तं निक्खिवित्ता ओहाएज्जा, तिण्णि संवच्छराणि तस्स तप्पत्तियं नो कप्पइ पायरियत्तं वा जाव गणावच्छेइयत्तं वा उद्दिसित्तए वा धारेत्तए वा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org