________________ चौथा उद्देशक] [347 17. प्राचार्य या उपाध्याय स्मृति में रहते हुए या स्मृति में न रहते हुए भी बड़ीदीक्षा के योग्य भिक्ष को दस दिन के बाद बड़ी दीक्षा में उपस्थापित न करे, उस समय यदि उस नवदीक्षित के कोई पूज्य पुरुष की बड़ीदीक्षा होने में देर हो तो उन्हें दीक्षाछेद या तप रूप कोई प्रायश्चित्त नहीं आता है। यदि उस नवदीक्षित के बड़ीदीक्षा के योग्य कोई पूज्य पुरुष न हो तो उन्हें दस रात्रि उल्लंघन करने के कारण एक वर्ष तक प्राचार्य यावत् गणावच्छेदक पद पर नियुक्त करना नहीं कल्पता है। विवेचन-प्रथम एवं अन्तिम तीर्थकर के शासन में भिक्ष ओं को सामायिकचारित्र रूप दीक्षा देने के बाद छेदोपस्थापनीयचारित्र रूप बड़ीदीक्षा दी जाती है। उसकी जघन्य कालमर्यादा सात अहोरात्र की है अर्थात् काल की अपेक्षा नवदीक्षित भिक्ष सात रात्रि के बाद कल्पाक (बड़ीदीक्षा के योग्य) कहा जाता है और गुण की अपेक्षा आवश्यकसूत्र सम्पूर्ण अर्थ एवं विधि सहित कंठस्थ कर लेने पर, जीवादि का एवं समितियों का सामान्य ज्ञान कर लेने पर, दशवकालिक सूत्र के चार अध्ययन की अर्थ सहित वाचना लेकर कंठस्थ कर लेने पर एवं प्रतिलेखन आदि दैनिक क्रियाओं का कुछ अभ्यास कर लेने पर 'कल्पाक' कहा जाता है। ___इस प्रकार कल्पाक (बड़ीदीक्षायोग्य) होने पर एवं अन्य परीक्षण हो जाने पर उस नवदीक्षित भिक्ष को बड़ीदीक्षा (उपस्थापना) दी जाती है। योग्यता के पूर्व बड़ीदीक्षा देने पर नि. उ. 11 सू. 84 के अनुसार प्रायश्चित्त आता है। उक्त योग्यतासंपन्न कल्पाक भिक्ष को सूत्रोक्त समय पर बड़ीदीक्षा न देने पर प्राचार्यउपाध्याय को प्रायश्चित्त प्राता है। इस प्रायश्चित्तविधान से यह स्पष्ट होता है कि किसी को नई दीक्षा या बड़ोदीक्षा देने का अधिकार प्राचार्य या उपाध्याय को ही होता है एवं उसमें किसी प्रकार की त्रटि होने पर प्रायश्चित्त भी उन्हें ही आता है। अन्य साधु, साध्वी या प्रवर्तक, प्रवर्तिनी भी प्राचार्य-उपाध्याय की आज्ञा से किसी को दीक्षा दे सकते हैं किन्तु उसकी योग्यता के निर्णय की मुख्य जिम्मेदारी प्राचार्य-उपाध्याय की ही होती है। सामान्य रूप से तो आगमानुसार प्रवृत्ति करने की जिम्मेदारी सभी साधु-साध्वी को होती ही है, फिर च्छ के व्यवस्था सम्बन्धी निर्देश प्राचार्य-उपाध्याय के अधिकार में होते हैं। अतः तत्सम्बन्धी विपरीत आचरण होने पर प्रायश्चित्त के पात्र भी वे प्राचार्यादि ही होते हैं। यहां इन तीन सूत्रों में बड़ीदीक्षा के निमित्त से तीन विकल्प कहे गये हैं--(१) विस्मरण में मर्यादा-उल्लंघन, (2) स्मृति होते हुए मर्यादा-उल्लंघन, (3) विस्मरण या अविस्मरण से विशेष मर्यादा-उल्लंघन / काल से एवं गुण से कल्पाक बन जाने पर उस भिक्ष को चार या पांच रात्रि के भीतर अर्थात् चार रात्रि और पांचवें दिन तक बड़ीदीक्षा दी जा सकती है। यह सूत्र में आये "चउराय पंचरायानो" शब्द का अर्थ है / इस छूट में विहार, शुभ दिन, मासिक धर्म की अस्वाध्याय, रुग्णता आदि अनेक कारण निहित हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org