________________ 346] [व्यवहारसूत्र वह उस पद को छोड़ दे तो दीक्षाछेद या तप रूप प्रायश्चित्त का पात्र नहीं होता है। जो सार्मिक साधु कल्प के अनुसार उसे प्राचार्यादि पद छोड़ने के लिए न कहें तो वे सभी सार्मिक साधु उक्त कारण से दीक्षाछेद या तप रूप प्रायश्चित्त के पात्र होते हैं। विवेचन-पूर्व सूत्र में रुग्ण या मरणासन्न प्राचार्य-उपाध्याय ने किसी भिक्षु को प्राचार्यादि देने का सूचन किया हो तो उनके कथन का विवेकपूर्वक आचरण करना आगमानुसार उचित माना गया है / इस सूत्र में भी वही विधान है / अन्तर यह है कि यहां द्रव्य एवं भाव से संयय का परित्याग करने के इच्छुक प्राचार्य-उपाध्याय का वर्णन है। शरीर अस्वस्थ होने से, वैराग्य की भावना मंद हो जाने से, वेदमोहनीय के प्रबल उदय से या अन्य परीषह उपसर्ग से संयम त्यागने का संकल्प उत्पन्न हो सकता है। उसका निवारण न होने से सामान्य भिक्षु या पदवीधरों के लिए भी ऐसी परिस्थति उत्पन्न हो सकती है। इस परिस्थिति का एवं उसके विवेक का वर्णन उद्दे. 3 सू. 28 में देखें। अन्य सम्पूर्ण विवेचन पूर्वसूत्र 13 के अनुसार समझ लेना चाहिये। उपस्थापन के विधान 15. पायरिय-उवज्झाए सरमाणे परं चउराय-पंचरायाओ कप्पागं भिक्खु नो उवट्ठावेइ कप्पाए, अत्थियाई से केइ माणणिज्जे कप्पाए नत्थि से केइ छए वा परिहारे वा। णस्थियाई से केइ माणणिज्जे कप्पाए से सन्तरा छेए वा परिहारे वा। 16. आयरिय-उवज्झाए असरमाणे परं चउराय-पंचरायानो कप्पागं भिक्खु नो उवट्ठावेइ कप्पाए, अत्थियाइं से केइ माणणिज्जे कप्पाए, नस्थि से केई छेए वा परिहारे वा / णस्थियाइं से केइ माणणिज्जे कप्पाए, से संतरा छए वा परिहारे वा। 17. आयरिय-उवज्झाए सरमाणे वा असरमाणे वा परं दसराय कप्पाओ कप्पागं भिक्खु नो उवट्ठावेइ कप्पाए, अत्थियाई से केइ माणणिज्जे कप्पाए नथि से केइ छए वा परिहारे वा। * 15. प्राचार्य या उपाध्याय स्मरण होते हुए भी बड़ीदीक्षा के योग्य भिक्ष को चार-पांच रात के बाद भी बड़ीदीक्षा में उपस्थापित न करे और उस समय यदि उस नवदीक्षित के कोई पूज्य पुरुष की बड़ीदीक्षा होने में देर हो तो उन्हें दीक्षाछेद या तप रूप कोई प्रायश्चित्त नहीं पाता है। यदि उस नवदीक्षित के बड़ीदीक्षा लेने योग्य कोई पूज्य पुरुष न हो तो उन्हें चार-पांच रात्रि उल्लंघन करने का छेद या तप रूप प्रायश्चित्त आता है। 16. प्राचार्य या उपाध्याय स्मृति में न रहने से बड़ीदीक्षा के योग्य भिक्ष को चार-पांच रात के बाद भी बड़ीदीक्षा में उपस्थापित न करे, उस समय यदि वहां उस नवदीक्षित के कोई पूज्य पुरुष की बड़ी दीक्षा होने में देर हो तो उन्हें दीक्षाछेद या तप रूप कोई प्रायश्चित्त नहीं आता है। यदि उस नवदीक्षित के बड़ीदीक्षा लेने योग्य कोई पूज्य पुरुष न हो तो उन्हें चार-पांच रात्रि उल्लंघन करने का दीक्षाछेद या तप रूप प्रायश्चित्त पाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org