________________ 352] [व्यवहारसूत्र (2) निवृत्त-जिका-विहार से निवृत्त या दूर देश के विचरण से निवृत्त होकर पुनः आज्ञा लेकर आस-पास में विचरण करने वाला भिक्षु / इन सूत्रों में प्रविष्ट एवं निवृत्त चरिका वाले आज्ञाप्राप्त भिक्षु को विनय-व्यवहार का विधान किया गया है / जिसमें 4-5 दिन की मर्यादा की गई है। इन मर्यादित दिनों के पूर्व गुरु प्राचार्य अादि का पुनः मिलने का अवसर प्राप्त हो जाय तो पूर्व की आज्ञा से ही विचरण किया जा सकता है किंतु इन मर्यादित दिनों के बाद अर्थात् 10-20 दिन से या कुछ महीनों से मिलने का अवसर प्राप्त हो तो पुनः सूत्रोक्त विधि से आज्ञा प्राप्त कर लेनी चाहिए। __ चार-पांच दिन का कथन एक व्यावहारिक सीमा है, यथा-स्थापनाकुल और राजा के कोठार, दुग्धशाला आदि स्थानों की जानकारी किए बिना गोचरी जाने पर निशी. उ. 4 तथा उ. 9 में प्रायश्चित्त विधान है। वहां पर भी 4-5 रात्रि की छूट दी गई है। इस उद्देशक के सूत्र 15 में उपस्थापना के लिए भी 4-5 रात्रि की छूट दी गई है। अतः प्रस्तुत प्रकरण से भी 4-5 दिन के बाद गुरु आदि से मिलने पर पुनः विधियुक्त आज्ञा लेना आवश्यक समझना चाहिये। शैक्ष और रत्नाधिक का व्यवहार 24. दो साहम्भिया एगयओ विहरंति, तं जहा--सेहे य, राइणिए य। तत्थ सेहतराए पलिच्छन्ने, राइणिए अपलिच्छन्ने, सेहतराएणं राइणिए उवसंपज्जियन्वे, भिक्खोबवायं च दलयइ कप्पागं / 25. दो साहम्मिया एगयओ विहरंति, तं जहा-सेहे य, राइणिए य / तत्थ राइणिए पलिच्छन्ने सेहतराए अपलिच्छन्ने / इच्छा राइणिए सेहतरागं उपसंपज्जेज्जा, इच्छा नो उवसंपज्जेज्जा, इच्छा भिक्खोववायं दलेज्जा कप्पागं, इच्छा नो दलेज्जा कप्पागं / 24. दो सार्मिक भिक्षु एक साथ विचरते हों, यथा-अल्प दीक्षापर्याय वाला और अधिक दीक्षापर्याय वाला। उनमें यदि अल्प दीक्षापर्याय वाला श्रुतसम्पन्न तथा शिष्यसम्पन्न हो और अधिक दीक्षापर्याय वाला श्रुतसम्पन्न तथा शिष्यसम्पन्न न हो तो भी अल्प दीक्षापर्याय वाले को अधिक दीक्षापर्याय वाले की विनय वैयावृत्य करना, आहार लाकर देना, समीप में रहना और अलग विचरने के लिए शिष्य देना इत्यादि कर्तव्यों का पालन करना चाहिये / 25. दो सार्मिक भिक्षु एक साथ विचरते हों, यथा--अल्प दीक्षापर्याय वाला और अधिक दीक्षापर्याय वाला। उनमें यदि अधिक दीक्षापर्याय वाला श्रुतसम्पन्न तथा शिष्यसम्पन्न हो और अल्प दीक्षापर्याय वाला श्रुतसम्पन्न तथा शिष्यसम्पन्न न हो तो अधिक दीक्षापर्याय वाला इच्छा हो तो अल्प दीक्षापर्याय वाले की वैयावृत्य करे, इच्छा न हो तो न करे / इच्छा हो तो आहार लाकर दे, इच्छा न हो तो न दे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org