________________ तीसरा उद्देशक] [337 सूत्र 18-22 यदि पदवीधर किसी अन्य को पद पर नियुक्त किये बिना संयम छोड़कर चला जाय तो उसे पुनः दीक्षा अंगीकार करने पर कोई पद नहीं दिया जा सकता / यदि कोई अपना पद अन्य को सौंप कर जावे या सामान्य भिक्षु संयम त्याग कर जावे तो पुनः दीक्षा लेने के बाद योग्य हो तो उसे तीन वर्ष के बाद कोई भी पद यथायोग्य समय पर दिया जा सकता है। बहुश्रुत भिक्षु या प्राचार्य आदि प्रबल कारण से अनेक बार झूठ-कपट-प्रपंचअसत्याक्षेप आदि अपवित्र पापकारी कार्य करे या अनेक भिक्षु, प्राचार्य आदि मिलाकर ऐसा कृत्य करें तो वे जीवन भर के लिए सभी प्रकार की पदवियों के अयोग्य हो जाते हैं और इसमें अन्य कोई विकल्प नहीं है। 23-29 उपसंहार 1-2 9-10 11 12 इस उद्देशक मेंप्रमुख बनकर विचरण करने के कल्प्याकल्प्य का, पद देने के योग्यायोग्य का, परिस्थितिवश अल्प योग्यता में पद देने का, प्राचार्य, उपाध्याय दो के नेतृत्व में तरुण या नवदीक्षित साधुओं को रहने का, प्राचार्य, उपाध्याय, प्रवर्तिनी इन तीन के नेतृत्व में तरुण या नवदीक्षित साध्वियों के रहने का, चतुर्थव्रत भंग करने वालों को पद देने के विधि-निषेध का, संयम त्याग कर पुनः दीक्षा लेने वालों को पद देने के विधि-निषेध का, झूठ-कपट-प्रपंच आदि करने वालों को पद देने के सर्वथा निषेध का, इत्यादि विषयों का वर्णन किया गया। ॥तीसरा उद्देशक समाप्त // 13-17 18-22 23-29 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org