________________ तीसरा उद्देशक 1. भिक्खू य इच्छेज्जा गणं धारेत्तए, भगवं च से अपलिच्छन्ने एवं से नो कप्पा गणं धारित्तए, भगवं च से पलिच्छन्ने, एवं से कप्पइ गणं धारेत्तए / 2. भिक्खु य इच्छेज्जा गणं धारेसए, नो से कप्पइ थेरे प्रणापुच्छित्ता गणं धारेत्तए / कप्पइ से थेरे आपुच्छित्ता गणं धारेत्तए, थेरा य से वियरेज्जा एवं से कप्पा गणं धारेत्तए, थेरा य से नो कप्पा गणं धारेत्तए। जं णं थेरेहि अविइण्णं गणं धारेइ से सन्तरा छए वा परिहारे वा, जे साहम्मिया उट्ठाए विहरंति, नस्थि णं तेसि केइ छए वा परिहारे वा। 1. यदि कोई भिक्ष गण को धारण करना अर्थात् अग्रणी होना चाहे और वह सूत्रज्ञान आदि योग्यता से रहित हो तो उसे गण धारण करना नहीं कल्पता है। यदि वह भिक्षु सूत्रज्ञान आदि योग्यता से युक्त हो तो उसे गण धारण करना कल्पता है / 2. यदि योग्य भिक्ष गण धारण करना चाहे तो उसे स्थविरों से पूछे बिना गण धारण करना नहीं कल्पता है। यदि स्थविर अनुज्ञा प्रदान करें तो गण धारण करना कल्पता है। यदि स्थविर अनुज्ञा प्रदान न करें तो गण धारण करना नहीं कल्पता है। यदि कोई स्थविरों की अनुज्ञा प्राप्त किए बिना ही गण धारण करता है तो वह उस मर्यादाउल्लंघन के कारण दीक्षा-छेद या तपप्रायश्चित्त का पात्र होता है, किन्तु जो सार्मिक साधु उसकी प्रमुखता में विचरते हैं वे दीक्षा-छेद या तपप्रायश्चित्त के पात्र नहीं होते हैं। विवेचन---गण को धारण करना दो प्रकार से होता है-१. कुछ साधुनों के समूह की प्रमुखता करते हुए विचरण करना या चातुर्मास करना यह प्रथम प्रकार का गण धारण है / ऐसे भिक्षु को गण धारण करने वाला, गणधर, गणप्रमुख, संघाटकप्रमुख, मुखिया या अग्रणी कहा जाता है। भाष्य में इसे "स्पर्धकपति" भी कहा गया है / 2. साधुओं के समूह का अधिपति अर्थात् प्राचार्यादि पद धारण करने वाला / जिसे प्राचार्य, उपाध्याय, गणधर, गच्छाधिपति, गणी आदि कहा जाता है / तात्पर्य यह है कि पद वालों को एवं प्रमुख रूप में विचरने वाले को "गणधर" कहा जाता है। प्रस्तुत दोनों सूत्रों में प्रथम प्रकार के गणधारक का कथन है / क्योंकि यहां स्थविरों की प्राज्ञा लेकर गण धारण करना और बिना आज्ञा गण धारण करने पर प्रायश्चित्त का पात्र होना कहा गया है / ऐसा विधान प्राचार्य पद धारण करने वाले के लिए उपयुक्त नहीं होता है। आचार्य पद गण के स्थविर देते हैं या वर्तमान आचार्य की आज्ञा से आचार्य पद दिया जाता है अथवा गच्छ के साधु-साध्वी या चतुर्विध संघ मिलकर प्राचार्य पद देते हैं, किन्तु कोई स्वयं ही पद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org