________________ 318] [व्यवहारसूत्र नंदीसूत्र की रचना के समय उसका विभक्त होना एवं निशोथ नामकरण हो जाना संभव है। उसके पूर्व अनेक प्रागम स्थानों में निशोथ नाम का कोई अस्तित्व नहीं है, केवल 'प्राचारप्रकल्प' या 'प्राचारप्रकल्प-अध्ययन' के नाम से विधान किये हैं। निशीथसूत्र के अलग हो जाने के कारण उसके रचनाकार के संबंध में अनेक विचार प्रचलित हुए हैं, यथा 1. यह विशाखागणि द्वारा पूर्वो से उद्धृत किया गया है। 2. समय की आवश्यकता को लेकर पार्यरक्षित ने इसकी रचना की है / 3. चौदहपूर्वी भद्रबाहुस्वामी ने निशोथ सहित चारों छेदसूत्रों को पूर्वो से उद्धृत किया है, इत्यादि कल्पनाएं की गई है। व्यवहारसूत्र में 'प्राचारप्रकल्प-डाध्ययन' का वर्णन है और उसे साधु-साध्वी दोनों को कंठस्थ रखने का कथन है और व्यवहारसूत्र चौदहपूर्वी भद्रबाहुस्वामो के द्वारा रचित (नियूंढ) है / अतः भद्रबाहुस्वामी के बाद में होने वाले विशाखागणि और आर्य रक्षित के द्वारा प्राचारप्रकल्प की रचना करने की कल्पना करना तो स्पष्ट ही पागम से विपरीत है। उन दोनों प्राचार्यों में से किसी एक के द्वारा पूर्वश्रुत से उद्ध त करना मान लेने पर निशीथसूत्र को पूर्वश्रुत का अंश मानना होगा। जबकि व्यवहारसूत्र में साध्वियों को उसके कंठस्थ रखने का विधान है और साध्वियों को पूर्वो का अध्ययन वजित भी है / अतः इन दोनों प्राचार्यों के द्वारा पूर्वो से उद्ध त करने का विकल्प भी सत्य नहीं है. किन्तु उन प्राचार्यों के पहले भी यह प्राचारप्रकल्प पूर्वी से भिन्न श्रुत रूप में उपलब्ध था, यह निश्चित है। भद्रबाहुस्वामी ने चार छेदसूत्रों की रचना नहीं की थी किन्तु तीन छेदसूत्रों को हो रचना को थी, यह दशाश्रुतस्कंधसूत्र की नियुक्ति की प्रथम गाथा से स्पष्ट है गाथा-वंदामि भद्दबाहुं, पाईणं चरिम-सगल-सुय-णाणि / सुत्तस्स फारगमिसि, दसासु कप्पे य ववहारे // दशाश्रुतस्कंध के नियुक्तिकर्ता द्वितीय भद्रबाहुस्वामी ने प्रथम भद्रबाहुस्वामी को प्राचीन भद्रबाहु के नाम से वंदन करके उन्हें तीन सूत्रों की रचना करने वाला कहा है। भद्रबाहुस्वामी ने यदि निशीथसूत्र की रचना की होती तो वे व्यवहारसूत्र में सोलह बार 'प्राचारप्रकल्प' का प्रयोग करने के स्थान में या अध्ययनक्रम कहने के वर्णन में कहीं निशीथ का भी नाम निर्देश कर देते। किन्तु अध्ययनक्रम में भी निशीथ का नाम नहीं दिया गया है, प्राचारप्रकल्प और 'दसा-कप्प-ववहार' नाम दिये हैं। अतः निशोथसूत्र को भद्रबाहु को रचना कहना भी प्रमाणसंगत नहीं हैं। इन सब विचारणाओं से यह सिद्ध होता है कि यह किसी को रचना नहीं है किन्तु आचारांग के अध्ययन को किसी आशय से पृथक किया गया है। कब किसने पृथक् किया, कब तक प्राचारप्रकल्प नाम रहा और कब निशीथ नाम हुमा, यह जानने का आधार नहीं मिलता है। तथापि नंदीसूत्र को रचना के समय यह पृथक्हो गया था और इसका नाम भी निशीथसूत्र निश्चित्त हो गया था तथा प्राचार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org