________________ तीसरा उद्देशक] [325 उसे पहले प्राचार्य की और बाद में उपाध्याय को निश्रा (अधीनता) स्वीकार करके ही रहना चाहिए। प्र०-हे भगवन् ! ऐसा कहने का क्या कारण है ? उ०--श्रमण निर्ग्रन्थ दो के नेतृत्व में ही रहते हैं, यथा-१. आचार्य और 2. उपाध्याय / 12. नवदीक्षिता, बालिका या तरुणी निर्ग्रन्थों के प्राचार्य, उपाध्याय और प्रवतिनी की यदि मृत्यु हो जावे तो उसे प्राचार्य उपाध्याय और प्रवर्तिनी के बिना रहना नहीं कल्पता है। उसे पहले प्राचार्य की, बाद में उपाध्याय की और बाद में प्रवर्तिनी की निश्रा (अधीनता) स्वीकार करके ही रहना चाहिए। प्र०-हे भगवन् ! ऐसा कहने का क्या कारण है ? उ०–श्रमणी निर्ग्रन्थी तीन के नेतृत्व में ही रहती है, यथा-१. प्राचार्य, 2. उपाध्याय और 3. प्रवर्तिनी। विवेचन-नव, डहर, तरुण का स्पष्टार्थ भाष्य में इस प्रकार किया गया है तिवरिसो होइ नवो, प्रासोलसगं तु डहरगं बेति / तरुणो चत्तालोसो, सत्तरि उण मज्झिमो, थेरओ सेसो / तीन वर्ष की दीक्षा पर्याय पर्यंत नवदीक्षित कहा जाता है। चार वर्ष से लेकर सोलह वर्ष की उम्र पर्यंत डहर-बाल कहा जाता है / सोलह वर्ष की उम्र से लेकर चालीस वर्ष पर्यंत तरुण कहा जाता है। सत्तर वर्ष में एक कम अर्थात् उनसत्तर (69) वर्ष पर्यन्त मध्यम (प्रौढ) कहा जाता है। सत्तर वर्ष से आगे शेष सभी वय वाले स्थविर कहे जाते हैं। -भाष्य गा. 220 एवं टीका। आगम में साठ वर्ष वाले को स्थविर कहा है। –व्यव. उ. १०.-ठाणं अ. 3. भाष्यगाथा 221 में यह स्पष्ट किया गया है कि नवदीक्षित भिक्षु बाल हो या तरुण हो, मध्यम वय वाला हो अथवा स्थविर हो, उसे प्राचार्य उपाध्याय की निश्रा के बिना रहना या विचरण करना नहीं कल्पता है। अधिक दीक्षापर्याय वाला भिक्ष यदि चालीस वर्ष से कम वय वाला हो तो उसे भी प्राचार्य उपाध्याय की निश्रा बिना रहना नहीं कल्पता है। तात्पर्य यह है कि बाल या तरुण वय वाले भिक्ष और नवदीक्षित भिक्ष एक हों या अनेक हों, उन्हें आचार्य और उपाध्याय की निश्रा में ही रहना आवश्यक है / जिस गच्छ में आचार्य उपाध्याय कालधर्म प्राप्त हो जाए अथवा जिस गच्छ में प्राचार्य उपाध्याय न हों तो बाल-तरुण-नवदीक्षित भिक्ष ओं को प्राचार्य उपाध्याय के बिना या प्राचार्य उपाध्याय रहित गच्छ में किंचित् भी रहना नहीं कल्पता है / उन्हें प्रथम अपना आचार्य नियुक्त करना चाहिए तत्पश्चात् उपाध्याय नियुक्त करना चाहिए / सूत्र में प्रश्न किया गया है— "हे भगवान् ! आचार्य उपाध्याय बिना रहना ही नहीं, ऐसा कहने का क्या आशय है ?" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org