________________ 324] [व्यवहारसूत्र इसी प्राशय से सूत्रार्थ एवं भावार्थ भाष्य से भिन्न प्रकार का किया है। यद्यपि भाष्य में प्रायः सर्वत्र अनेक संभावित अर्थों का संग्रह किया जाता है और प्रमुख रूप से सूत्राशय के अनुरूप अर्थ कौनसा है, इसे भी 'सुत्तनिवातो' शब्द से गाथा में सूचित किया जाता है / तथापि कहीं-कहीं किसी सूत्र की व्याख्या में केवल एक ही अर्थ भावार्थ में व्याख्या पूर्ण कर दी जाती है, जो कि आगम से अविरुद्ध भी नहीं होती है। इसलिए ऐसे निम्नांकित स्थलों पर भाष्य से सर्थथा भिन्न अर्थ-विवेचन करना पड़ा हैयथा-(१) निशीथसूत्र उ. 2, सू. 1 'पादपोंछन' (2) निशीथसूत्र उ. 2, सू. 8 'विसुयावेइ' (3) निशीथसूत्र उ. 3, सू. 73 'गोलेहणियासु' (4) निशीथसूत्र उ. 3, सू. 80 'अणुग्गएसूरिए' (5-6) निशीथसूत्र उ. 19, सू. 1 और 6 'वियड' और 'गालेइ' (7) व्यवहार उ. 2, सू. 17 'प्रट्ठजाय' (8) व्यवहार उ. 3, सू. 1-2 'गणधारण' (9) व्यवहार उ. 9, सू. 31 'सोडियसाला' (10) व्यवहार उ. 10, सू. 22 'तिवासपरियाए' (11) व्यवहार उ. 3, सू. 10 पलासगंसि' (12-13) तथा प्रस्तुत दोनों सूत्र में 'निरुद्धपरियाए, निरुद्धवासपरियाए / इन विषयों की विस्तृत जानकारी के लिए सूचित स्थलों के विवेचन देखें। निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थी को आचार्य के नेतृत्व बिना रहने का निषेध 11. निग्गंथस्स णं नव-डहर-तरुणस्स प्रायरिय-उवज्झाए वीसुभेज्जा, नो से कप्पड़ प्रणारिय-उवज्झाइए होत्तए। कप्पइ से पुठवं आयरियं उद्दिसावेत्ता तनो पच्छा उवज्झायं / ५०-से किमाहु भंते ! उ०-दु-संगहिए समणे निग्गंथे, तं जहा-१. प्रायरिएण य, 2. उवज्झाएण य / 12. निग्गंथीए णं नव-डहर-तरुणीए आयरिय-उवज्झाए, पत्तिणी य वीसु भेज्जा, नो से कप्पइ अणायरिय-उवज्झाइयाए अपवित्तिणियाए होत्तए। कप्पइ से पुव्वं आयरियं उद्दिसावेत्ता तओ उवज्झायं तओ पच्छा पवत्तिणि / प०-से किमाहु भंते ? उ०—ति-संगहिया समणी निग्गंथी, तं जहा--१. पायरिएण य, 2. उवज्झाएण य, 3. पवत्तिणीए य / 11. नवदीक्षित, बालक या तरुण निर्ग्रन्थ के प्राचार्य और उपाध्याय की यदि मृत्यु हो जाए तो उसे प्राचार्य और उपाध्याय के बिना रहना नहीं कल्पता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org