________________ 322] [व्यवहारसूत्र विधि का कथन किया गया है। अर्थात् पूर्व सूत्रों में कम से कम तीन वर्ष एवं पांच वर्ष की दीक्षापर्याय का होना क्रमश: उपाध्याय एवं आचार्य के लिए अनिवार्य कहा गया है और इन सूत्रों में उसी दिन के दीक्षित भिक्षु को या अनिवार्य वर्षों से कम वर्ष की दीक्षापर्याय वाले को अथवा आवश्यक श्रुत-अध्ययन अपूर्ण हो ऐसे भिक्षु को परिस्थितिवश आचार्य उपाध्याय पद देने का विधान किया है। इन सूत्रों का तात्पर्य यह है कि यदि किसी में सूत्रोक्त पद के योग्य अन्य सभी गुण हों तो किसी विशेष परिस्थिति में श्रुत-धारण की या दीक्षापर्याय की अपूर्णता को नगण्य किया जा सकता है, क्योंकि अन्य सभी गुण विद्यमान होने से श्रुत और दीक्षा-पर्याय की कमी की पूर्ति तो पद देने के बाद भी हो सकती है। नौवें सूत्र में उसी दिन के दीक्षित भिक्षु को पद देने का कथन करते हुए उसके परिवार की धर्मनिष्ठा एवं कुलीनता की पराकाष्ठा सूचित की गई है एवं सूत्र के अंत में ऐसे गुणसंपन्न कुलों से दीक्षित होने वाले भिक्षु को उसी दिन पद देने का उपसंहार-वाक्य कहा गया है / दसवें सूत्र में अपूर्ण सूत्र के अध्ययन को पूर्ण करने की शर्त कही गई है अर्थात् पद देने के पूर्व या पश्चात् शीघ्र ही अवशेष श्रुत को पूर्ण करना आवश्यक कहा है। इन सूत्रों में दो प्रकार की गणस्थिति को लक्ष्य में रख कर कथन किया गया है-(१) गण में रहे हुए साधुओं में सर्वानुमत एवं अनुशासनव्यवस्था संभालने योग्य कोई भी नहीं है, उस समय किसी योग्य भावित कुल के प्रतिभासंपन्न व्यक्ति का दीक्षित होना सूचित किया गया है। (2) गण में दीर्घ दीक्षापर्याय वाले एवं श्रुतसंपन्न साधुओं में कोई भी पद-योग्य नहीं है, किंतु अल्पपर्याय वाला एवं अपूर्ण श्रुत वाला भिक्षु योग्य है, ऐसी परिस्थितियों में उसे पद पर नियुक्त करना सूचित किया है। नवदीक्षित भिक्षु के सूत्रणित पारिवारिक गुण 1. तथारूप कुशल स्थविरों द्वारा धर्मभावना से भावित किये गये कुल / 2. पत्तियाणि-'प्रीतिकराणि, वैनयिकानि कृतानि'-विनयसंपन्न कुल / 3. थेज्जाणि-'प्रीतिकरतया गच्छचितायां प्रमाणभूतानि-गच्छ में प्रीति होने से गच्छ के कार्यसम्पादान में प्रमाणभूत / 4. वेसासियाणि-आत्मानं अन्येषां गच्छवासिना मायारहितानि कृततया विश्वासस्थानानिगच्छ के समस्त साधुओं के विश्वासयोग्य सरल स्वभावी। 5. सम्मयाणि--तेषु तेषु प्रयोजनेषु इष्टानि-संघ के अनेक कार्यों में इष्ट / 6. सम्मुइकराणि-बहुशो विग्रहेषु समुत्पन्नेषु गणस्य समुदितं अकार्षीत्-गच्छ में उत्पन्न क्लेश को शांत करके गच्छ को प्रसन्न रखने वाले। 7. अणमयाणि-बहुमयाणि-गच्छगत बाल म्लान वृद्ध आदि सभी को मान्य, बहुमान्य प्रादेय वचन वाले। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org