________________ तीसरा उद्देशक] [321 अल्पदीक्षापर्याय वाले को पद देने का विधान 9. निरुद्धपरियाए समणे निग्गंथे कप्पइ तदिवसं पायरिय-उवज्ञायत्ताए उदिसित्तए। प०–से किमाहु भंते। उ०-अस्थि णं थेराणं तहारूवाणि कुलाणि, कडाणि, पत्तियाणि, थेज्जाणि वेसासियाणि, सम्मयाणि, सम्मुइकराणि, अणुमयाणि, बहुमयाणि भवंति। तेहि कडेहि, तेहि पत्तिएहि, तेहि थेग्जेहि, तेहि वेसासिएहि, तेहि सम्मएहि, तेहि सम्मुइकरेहि, तेहि अणुमहि, तेहि बहुमहिं / जं से निरुद्धपरियाए समणे निग्गंथे कप्पइ आयरिय-उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए तद्दिवसं / 10. निरुद्धवासपरियाए समणे णिग्गंथे कप्पइ आयरिय-उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए, समुच्छेयकप्पंसि / तस्स णं आयार-पकप्पस्स देसे अवट्ठिए, से य अहिज्जिस्सामि त्ति अहिज्जेज्जा, एवं से कप्पइ आयरिय-उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए। से य अहिज्जिस्सामि ति नो अहिज्जेज्जा, एवं से नो कप्पई आयरिय-उवज्झायत्ताए उद्दिसित्तए। 9. निरुद्ध (अल्प) पर्याय वाला श्रमण निर्ग्रन्थ जिस दिन दीक्षित हो, उसी दिन उसे प्राचार्य या उपाध्याय पद देना कल्पता है। प्र०---हे भगवन् ! ऐसा कहने का क्या कारण है ? उ०-स्थविरों के द्वारा तथारूप से भावित प्रीतियुक्त, स्थिर, विश्वस्त, सम्मत, प्रमुदित, अनुमत और बहुमत अनेक कुल होते हैं। उन भावित प्रीतियुक्त, स्थिर, विश्वस्त, सम्मत, प्रमुदित, अनुमत और बहुमत कुल से दीक्षित जो निरुद्ध (अल्प) पर्याय वाला श्रमण निर्ग्रन्थ है, उसे उसी दिन प्राचार्य या उपाध्याय पद देना कल्पता है। 10. आचार्य या उपाध्याय के काल-धर्मप्राप्त (मरण) हो जाने पर निरुद्ध (अल्प) वर्ष पर्याय वाले श्रमण निर्ग्रन्थ को प्राचार्य या उपाध्याय पद देना कल्पता है। _उसके प्राचारप्रकल्प का कुछ अंश अध्ययन करना शेष हो और वह अध्ययन पूर्ण करने का संकल्प रखकर पूर्ण कर ले तो उसे प्राचार्य या उपाध्याय पद देना कल्पता है। किन्तु यदि वह शेष अध्ययन पूर्ण करने का संकल्प रखकर भी उसे पूर्ण न करे तो उसे प्राचार्य या उपाध्याय पद देना नहीं कल्पता है / विवेचन-पूर्व के छह सूत्रों में प्राचार्य आदि पद देने योग्य भिक्षु के गुणों का वर्णन करते हुए उत्सर्गविधि का कथन किया गया है। इस सूत्रद्विक में दीक्षापर्याय एवं श्रुत-अध्ययन सम्बन्धी अपवाद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org