________________ तीसरा उद्देशक] [327 बीस वर्ष की दीक्षापर्याय वाला पर्यायस्थविर होने से 29 वर्ष की वय में वह प्राचार्य की प्राज्ञा लेकर एकलविहार साधनाएँ कर सकता है। किन्तु सपरिस्थितिक एकल विहार या गच्छत्याग नहीं कर सकता। ऐसे स्पष्ट विधान वाले सूत्र एवं अर्थ के उपलब्ध होते हुए भी समाज में निम्न प्रवतियां या परम्पराएं चलती हैं, वे उचित नहीं कही जा सकतीं / यथा--- (1) केवल प्राचार्य पद से गच्छ चलाना और उपाध्याय पद नियुक्त न करना / (2) कोई भी पद नियुक्त न करने के आग्रह से विशाल गच्छ को अव्यवस्थित चलाते रहना। (3) उक्त वय के पूर्व ही गच्छत्याग करना।। ऐसा करने में स्पष्ट रूप से उक्त प्रागमविधान की स्वमति से उपेक्षा करना है। इस उपेक्षा से होने वाली हानियां इस प्रकार हैं 1. गच्छगत साधुओं के विनय, अध्ययन, आचार एवं संयमसमाधि की अव्यवस्था प्रादि अनेक दोषों की उत्पत्ति होती है। 2. साधुओं में स्वच्छन्दता एवं प्राचार-विचार की भिन्नता हो जाने से क्रमशः गच्छ का विकास न होकर अधःपतन होता है। 3. साधुत्रों में प्रेम एवं संयमसमाधि नष्ट होती है और क्लेशों की वृद्धि होती है / 4. अन्ततः गच्छ भी छिन्न-भिन्न होता रहता है। अतः प्रत्येक गच्छ में प्राचार्य उपाध्याय दोनों पदों पर किसी को नियुक्त करना आवश्यक है / यदि कोई प्राचार्य उपाध्याय पदों को लेना या गच्छ में ये पद नियुक्त करना अभिमानसूचक एवं क्लेशवृद्धि कराने वाला मानकर सदा के लिये पदरहित गच्छ रखने का आग्रह रखते हैं और ऐसा करते हुए अपने को निरभिमान होना व्यक्त करते हैं, तो ऐसा मानना एवं करना उनका सर्वथा अनुचित है और जिनाज्ञा की अवहेलना एवं प्रासातना करना भी है / क्योंकि जिनाज्ञा प्राचार्य उपाध्याय नियुक्त करने की है तथा नमस्कारमंत्र में भी ये दो स्वतन्त्र पद कहे गये हैं। अतः उपर्युक्त आग्रह में सूत्रविधानों से भी अपनी समझ को सर्वोपरि मानने का अहं सिद्ध होता है। यदि प्राचार्य उपाध्याय पद के अभाव में निरभिमान और क्लेशरहित होना सभी विशाल गच्छ वाले सोच लें तो नमस्कार मंत्र के दो पदों का होना ही निरर्थक सिद्ध होगा। जिससे पद-नियुक्ति सम्बन्धी सारे आगमविधानों का भी कोई महत्त्व नहीं रहेगा। इसलिये अपने विचारों का या परम्परा का आग्रह न रखते हुए सरलतापूर्वक प्रागमविधानों के अनुसार ही प्रवृत्ति करना चाहिए। सारांश (1) प्रत्येक नव डहर तरुण साधु को दो- और साध्वी को तीन पदवीधरयुक्त गच्छ में ही रहना चाहिए। (2) इन पदवीधरों से रहित गच्छ में नहीं रहना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org