________________ दूसरा उद्देशक विचरने वाले साधर्मिकों के परिहारतप का विधान 1. दो साहम्मिया एगयनो विहरंति, एगे तत्थ अन्नयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, ठवणिज्जं ठबइत्ता करणिज्जं वेयावडियं / 2. दो साहम्मिया एगयनो विहरंति, दो वि ते अन्नयर प्रकिच्चट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, एगं तत्थ कप्पागं ठवइत्ता एगे निविसेज्जा, अह पच्छा से वि निविसेज्जा। 3. बहवे साहम्मिया एगयओ विहरंति, एगे तत्थ अन्नयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, ठवणिज्जं ठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं / 4. बहवे साहम्मिया एगयनो विहरंति, सम्वे वि ते अन्नयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, एगं तत्थ कप्पागं ठबइसा अवसेसा निविसेज्जा, अह पच्छा से वि निविसेज्जा। 5. परिहारकप्पट्टिए भिक्खू गिलाएमाणे अन्नयरं अकिच्चट्ठाणं पडिसेवित्ता पालोएज्जा। से य संथरेज्जा ठवणिज्ज ठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं / से य नो संथरेज्जा अणुपरिहारिएणं तस्स करणिज्जं वेयावडियं / से य संते बले अणुपरिहारिएणं कोरमाणं वेयावडियं साइज्जेज्जा, से वि कसिणे तत्थेव आरुहेयब्वे सिया। 1. दो सामिक साधु एक साथ विचरते हों और उनमें से यदि एक साधु किसी अकृत्यस्थान की प्रतिसेवना करके आलोचना करे तो उसे प्रायश्चित्त तप में स्थापित करके सार्मिक भिक्षु को उसकी वैयावृत्य करनी चाहिए। 2. दो सार्मिक साधु एक साथ विचरते हों और वे दोनों ही साधु किसी प्रकृत्यस्थान की प्रतिसेवना करके आलोचना करें तो उनमें से एक को कल्पाक (अग्रणी) स्थापित करे और एक परिहारतप रूप प्रायश्चित्त को वहन करे और उसका प्रायश्चित्त पूर्ण होने के बाद वह अग्रणी भी प्रायश्चित्त को वहन करे। 3. बहुत से सार्मिक साधु एक साथ विचरते हों। उनमें एक साधु किसी अकृत्यस्थान की प्रतिसेवना करके आलोचना करे तो (उनमें जो प्रमुख स्थविर हो वह) उसे प्रायश्चित्त बहन करावे और दूसरे भिक्षु को उसकी वैयावृत्य के लिए नियुक्त करे। 4. बहुत से सार्धामक साधु एक साथ विचरते हों और वे सब किसी अकृत्यस्थान की प्रतिसेवना करके आलोचना करें तो उनमें से किसी एक को अग्रणी स्थापित करके शेष सब प्रायश्चित्त वहन करें बाद में वह अग्रणी साधु भी प्रायश्चित्त वहन करे / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org