________________ प्रथम उद्देशक] [રક૭ 7. एवं उसके अभाव में ग्राम के बाहर अरिहंत सिद्ध प्रभु को साक्षी से आलोचना करके स्वयं प्रायश्चित्त स्वीकार कर ले। उपसंहार सूत्र 1-14 15-18 20-22 23-30 इस उद्देशक मेंप्रायश्चित्त देने का, प्रायश्चित्त वहन कराने का, पारिहारिक के साथ व्यवहार करने का, उसके स्थविर की सेवा में जाने का, एकलविहारी या पावस्थादि के पुनः गच्छ में आने का, अन्यलिंग धारण करने का, वेश छोड़कर पुनः गण में आने की इच्छा वाले का, आलोचना करने के क्रम का, इत्यादि विषयों का उल्लेख किया गया है / م WWW م س // प्रथम उद्देशक समाप्त / / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org