________________ 261 269 272 276 280 व्यवहारसूत्र [256-458] प्रथम उद्देशक कपटसहित तथा कपटरहित अालोचक को प्रायश्चित्त देने की विधि परिहारकल्पस्थित भिक्षु का वैयावृत्य के लिए विहार अकेले विचरने वाले का गण में पुनरागमन पार्श्वस्थ-विहारी आदि का गण में पुनरागमन संयम छोड़कर जाने वाले का गण में पुनरागमन पालोचना करने का क्रम प्रथम उद्देशक का सारांश दूसरा उद्देशक विचरने वाले सार्मिक के परिहारतप का विधान रुग्ण भिक्षुओं को गण से निकालने का निषेध अनवस्थाप्य और पारांचिक भिक्षु की उपस्थापना अकृत्यसेवन का आक्षेप और उसके निर्णय की विधि संयम त्यागने का संकल्प एवं पुनरागमन एकपक्षीय भिक्षु को पद देने का विधान पारिहारिक और अपारिहारिकों के परस्पर आहार-सम्बन्धी व्यवहार दूसरे उद्देशक का सारांश 286 288 290 294 295 297 299 303 307 [78] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org