________________ 276] [व्यवहारसूत्र 2. प्राचार्यादि के अनुशासन से घबराकर अथवा स्थान, क्षेत्र, आहार, वस्त्र प्रादि-मनोनुकूल प्राप्त करने हेतु अथवा अनेक स्थलों को देखने हेतु किया गया गीतार्थ का एकलविहार भी 'अकारण एकलविहार' है तथा सभी अगीतार्थों का एकल विहार तो 'अकारण एकल विहार' ही कहा जाता है। प्रस्तुत सूत्रत्रिक में आचार्य, उपाध्याय, गणावच्छेदक एवं सामान्य भिक्षुत्रों के एकलविहार करने का एवं गण में पुनरागमन का विधान किया गया है। सारांश यह है कि एकलविहार प्रशस्त अप्रशस्त दोनों प्रकार का होता है। अतएव एकलविहार आगमों में निषिद्ध भी है एवं विहित भी है / गीतार्थ का आगमोक्त कारणों के उपस्थित होने पर किया गया प्रशस्त एकलविहार आगमविहित है। अगीतार्थ, अबहुश्रुत और अव्यक्त का एकलविहार एकान्त निषिद्ध है और ये तीनों ही शब्द एकार्थक भी हैं। संयम में शिथिल, अजागरूक एवं क्रोध, मान आदि कषायों की अधिकता वाले भिक्षु का . एकलविहार अप्रशस्त है एवं वह निदित एकलविहार कहा गया है / ये प्रशस्त अप्रशस्त कोई भी एकाकीविहारी भिक्ष पुन: गच्छ में आकर रहना चाहे तो उचित परीक्षण करके एवं योग्य प्रायश्चित्त देकर गच्छ में रखा जा सकता है / यह तीनों सूत्रों का सार है। पार्श्वस्थ-विहारी आदि का गण में पुनरागमन 26. भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म पासत्यविहारपडिम उवसंपज्जित्ताणं विहरेज्जा, से य इच्छेज्जा वोच्चं पि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, अस्थि य इत्थ सेसे, पुणो आलोएज्जा, पुणो पडिक्कमेज्जा, पुणो छेयपरिहारस्स उवट्टाएज्जा। 27. भिक्खू य गणाओ प्रवक्कम्म अहाछंदविहारपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरेज्जा, से य इच्छेज्जा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपज्जिताणं विहरित्तए, अत्थि य इत्थ सेसे, पुणो पालोएज्जा, पुणो पडिक्कमेज्जा, पुणो छेयपरिहारस्स उवट्ठाएज्जा। ___28. भिक्खू य गणाम्रो अवक्फम्म कुसीलविहारपडिम उवसंपज्जित्ताणं विहरेज्जा, से य इच्छेज्जा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, अस्थि य इत्य सेसे, पुणो आलोएज्जा, पुणो छेयपरिहारस्स उवट्ठाएज्जा। 29. भिक्खू य गणाओ अवक्फम्म प्रोसन्नविहारपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरेज्जा, से य इच्छेज्जा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, अत्थि य इत्थ सेसे, पुणो पालोएज्जा, पुणो पडिक्कमेज्जा पुणो छेयपरिहारस्स उवट्ठाएज्जा। 30. भिक्खू य गणाओ अवक्कम संसत्तविहारपडिमं उवसंपज्जित्ताणं विहरेज्जा, से य इच्छेज्जा दोच्चं पि तमेव गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, अत्थि य इत्थ सेसे, पुणो आलोए ज्जा, पुणो पडिक्कमेज्जा, पुणो छेयपरिहारस्स उबट्टाएज्जा। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org